Prabhat Times
Bathina बठिंडा। (HMEL historic step towards bringing Phulkari recognition on the international stage) पंजाब की प्राचीन हस्तकलां फुलकारी को जीवंत रखने व “महिला सशक्तिकरण” के लिए एचएमईएल की तरफ से नाभा फाउंडेशन से मिलकर शुरू किए गए फुलकारी प्रोजेक्ट की छाप अब अंतरराष्टरीय स्तर पर भी नजर आने लगी है।
गुरू गोबिंद सिंह रिफाइनरी के आसपास के गांव की करीब 300 से ज्यादा महिलाओं को प्रशिक्षित करने के बाद फुलकारी प्रशिक्षण कार्यक्रम” के अंतर्गत एक विशेष प्रतिनिधिमंडल ने 19 से 23 मार्च 2025 के दौरान जर्मनी के डॉर्टमुंड शहर का दौरा किया और यूरोप की सबसे बड़ी रचनात्मक प्रदर्शनी ’‘क्रिएटिवा’’ में भाग लिया।
एचएमईएल के सौजन्य से आयोजित इस अंतरराष्ट्रीय दौरे का उद्देश्य भारत की पारंपरिक कला ’फुलकारी’ को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करना, वैश्विक उपभोक्ता पसंद को समझना, और हस्तशिल्प के क्षेत्र में संभावित साझेदारियों की पहचान करना था।
यह अंतरराष्ट्रीय भ्रमण भारत की पारंपरिक कला ’फुलकारी’ को न केवल वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम साबित हुआ, बल्कि रिफाइनरी के आसपास के गांव की आम महिलाएं जो पहले घरों तक ही सीमित थी, उन्हें भी अपनी कला को अंतरराष्टरीय स्तर पर प्रस्तुत करने का मंच प्रदान किया।
इस यात्रा ने प्रशिक्षिकाओं को नई प्रेरणा, आधुनिक डिजाइन सोच, और वैश्विक फैशन की समझ प्रदान की। साथ ही, इससे भारत के हस्तशिल्प उद्योग को अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों और नवाचार की नई दिशा मिली है।
इस प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व ’एचएमईएल बठिंडा’ के सीएसआर प्रमुख ’श्री विश्व मोहन प्रसाद’ व ’द नाभा फाउंडेशन’ की कार्यकारी निदेशक ’सुश्री शुभ्रा सिंह’ ने किया।
इस टीम में ’फुलकारी प्रशिक्षण कार्यक्रम’ से जुड़ी चार महिला प्रशिक्षिकाएं जो रिफाइनरी के आसपास स्थित गांव से है भी शामिल थीं, जिनमें गांव रामसरां से सत्वीर कौर’, गांव माहीनंगल से मनप्रीत कौर’, गांव मलकाना से संदीप कौर’ व लखबीर कौर ने इस प्रदर्शनी में हिस्सा लिया।
जिन्होंने अपने कौशल और सृजनात्मकता से अंतरराष्ट्रीय दर्शकों को प्रभावित किया। डॉर्टमुंड में आयोजित ’क्रिएटिवा’ प्रदर्शनी में दुनिया भर के 700 से अधिक प्रदर्शकों ने हिस्सा लिया।
प्रदर्शनी में उपभोक्ता वस्तुओं, रचनात्मक कला, फैशन, टेक्सटाइल, और पारंपरिक हस्तकला को प्रमुखता से प्रदर्शित किया गया।
भारतीय टीम ने विशेष रूप से हाथ की कढ़ाई, पारंपरिक शिल्प, और फैशन डिजाइन पर आधारित स्टॉल्स का गहन अवलोकन किया।
मैं तो अपनी पढाई घर में रहकर प्राइवेट कर रही थी, मैंने कभी सोचा नहीं था कि जर्मनी जाकर अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी का हिस्सा बनूंगी, मगर एचएमईएल के फुलकारी प्रोजेक्ट से जुडकर मुझे न केवल एक नई कला सीखने का मौका मिला बल्कि बतौर टरेनर एक पहचान मिली।
जर्मनी में एक्सपोजर विजिट के दौरान मैंने कश्मीरी शॉल, पश्मीना, और प्राकृतिक टोन वाले वस्त्रों की प्रदर्शनी से सीखा कि कैसे भारत की पारंपरिक कढ़ाई को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समकालीन डिजाइन से जोड़कर प्रस्तुत किया जा सकता है, अब हम ग्रामीण महिलाओं को भी इससे रूबरू करवा जागरूक करेंगे ताकि फुलकारी राष्टरीय मंच पर अपने रंग बिखेर पाए।
मनप्रीत कौर, टरेनर, गांव माहीनंगल
मैं पहले विदेश जाकर पढना चाहती थी, मगर जब मेरे गांव मलकाना में ही फुलकारी टरेनिंग शुरू हुई तो मैं इससे जुडकर एचएमईएल व नाभा फाउंडेशन का हिस्सा बनी। मुझे लगा कि मैं अब फुलकारी कला से जुडकर अपने गांव में ही रहरक कुछ कर सकती हूं।
मुझे बतौर टरेनर दूसरी महिलाओं को सिखाने का मौका मिला और अब जर्मनी एक्सपोजर विजिट में जाने से विदेश जाकर अंतरराष्टरीय स्तर पर फुलकारी कलां को समझने व प्रसारित करने का मौका मिला।
विजिट के दौरान हमने एक प्रतिष्ठित फैशन व डिजाइन संस्थान द्वारा आयोजित ’बैग मेकिंग वर्कशॉप’ में हिस्सा भी लिया, जहाँ स्वयं बैग बनाकर वैश्विक डिजाइन प्रक्रियाओं और सौंदर्यशास्त्र को अनुभव किया।
संदीप कौर, टरेनर, गांव मलकाना,
मैं पहले साधारण महिलाओं की तरह अपने घर में सिलाई का काम करती थी, मैंने सोचा भी नहीं था कि एक दिन फुलकारी से मेरी अलग पहचान होगी।
मुझे शादी में जो नानी ने फुलकारी दी थी, उसे देखकर मैंने भी फुलकारी बनाना सीखा, एचएमईएल ने मुझे नाभा फाउंडेशन के जरिए टरेनर बनने का मौका दिया और फिर जर्मनी में अंतरराष्टरीय स्तर पर एक्सपोजर विजिट का हिस्सा बनी।
हमने वहां विशेष रूप से तैयार किए गए ’फुलकारी बुकमार्क्स’ को सांस्कृतिक आदान-प्रदान के रूप में अंतरराष्ट्रीय आगंतुकों के बीच वितरित किया।
इन बुकमार्क्स को अत्यधिक सराहना प्राप्त हुई और इनसे पंजाब की पारंपरिक कढ़ाई को लेकर अनेक रचनात्मक संवाद आरंभ हुए। हमने डिजाइनर्स के साथ बातचीत कर ’फुलकारी कढ़ाई’ की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और कलात्मक महत्ता को साझा किया।
डिजाइनर्स ने भारतीय कारीगरों की बारीकियों और रचनात्मकता की प्रशंसा करते हुए, संभावित सहयोग के लिए रुचि भी दिखाई।
सतवीर कौर, टरेनर, गांव रामसरा,
भारतीय टीम ने डॉर्टमुंड व कोलोन शहर में प्रमुख अंतरराष्ट्रीय ब्रांड्स के आउटलेट्स का दौरा भी किया। उन्होंने देखा कि वहाँ के समर फैशन में ’हल्के व सांस लेने योग्य कपड़े’, ’मिनिमलिस्ट डिजाइंस’, और ’प्राकृतिक रंगों’ की विशेष मांग है।
विशेष रूप से ’क्रॉप शर्ट्स, लिनन ड्रेस, शॉर्ट जैकेट्स’ और ’साइड-कट स्कर्ट्स’ जैसे डिजाइंस बहुत लोकप्रिय थे।
कोलोन के स्थानीय फैशन बुटीक और डिजाइनर स्टोर्स के भ्रमण से उन्हें क्षेत्रीय जर्मन फैशन शैलियों की भी गहरी समझ मिली, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि भारत की पारंपरिक कढ़ाई को यदि आधुनिक डिजाइनों में ढाला जाए, तो उसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारी मांग बन सकती है।
प्रतिनिधिमंडल ने जर्मनी के प्रसिद्ध बीवीबी नेशनल स्टेडियम’ और ’कोलोन शहर’ का सांस्कृतिक भ्रमण भी किया, जिससे उन्हें वहां की जीवनशैली, शहरी डिजाइन और लोक सांस्कृतिक समझ का अनुभव मिला। यह यात्रा न केवल व्यवसायिक दृष्टिकोण से, बल्कि सांस्कृतिक स्तर पर भी अत्यंत समृद्ध रही।
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