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Jalandhar जालंधर। (nirankari samagam jalandhar rajpita ramit ji) निरंकारी राजपिता जी रमित जी ने कहा है कि परमात्मा के साथ रिश्ता लेन देन का नहीं होना चाहिए। परमात्मा से रिश्ता प्रेम का होना चाहिए।

निरंकारी राजपिता रमित जी पंजाब में खुशियां बरसाते हुए मानवता का संदेश दे रहे हैं। आज जालंधर के कपूरथला रोड़ पर आयोजित समागम में साध संगत को आर्शीवाद दिया।

निरंकारी राजपिता रमित जी ने कहा कि साध संगत जी प्रेम से कहना धन निंरकार जी।

बीते एक साल में दूसरी बार जालंधर आने का अवसर का जिक्र करते हुए निरंकारी राजपिता रमित जी ने कहा कि हर स्थान पर भक्ति वाले भाव देखने को मिल रहे हैं, हर शहर पर सेवा वाले भाव देखने को मिल रहे हैं।

हर जगह जाने को मिल रहा है चाहे शहर है या गांव है, जो संत हैं भक्त हैं, जो इस परमात्मा को प्राप्त कर चुके हैं, देख चुके हैं, सद्गुरू के चरणों में जो आ चुके हैं, सद्गुरू का ब्रह्म ज्ञान प्राप्त करके इस परमात्मा को देख रहे हैं, ज्ञान दे रहे हैं, जीवन भक्ति की राह पर चल रहे हैं, सच्चाई वाले लफ्ज़ सुनने को मिल रहे हैं।

खुद परमात्मा को पाकर अब प्रयास करे जा रहे हैं कि सारी मानवता को संदेश दिया जा सके कि ये मानव जीवन भाग्य से मिला है, ये अवसर मिला है, इसको प्राप्त कर लिया जाए, गोबिंद (परमात्मा) को प्राप्त कर लिया जाए, आत्मा का कल्याण कर लिया जाए।

निरंकारी राजपिता जी ने कहा कि अपना भी जीवन अगर देखे जब तक ये सत्य जीवन में नहीं आया था तो जब तक इस बात का बोध नहीं हुआ था कि परमात्मा है क्या, भक्ति है क्या, जिसे आवाज दे रहें हैं, पुकार रहे हैं, वो परमात्मा जिसको मैं दूर समझता था, जिसका नाम जपा जा रहा हूं, अज्ञानता में फंसा हुआ था, लेकिन जब सद्गुरू की मेहर हुई तो परमात्मा का दर्शन हुए।

फर्क ये है कि परमात्मा का बोध होने से पहले परमात्मा के साथ किस प्रकार का रिश्ता था। अब जब सच सामने आया, गुरू की आंख मिली जिससे हम दर्शन कर पा रहे हैं। तो अब सोचते हैं कि कैसी मूर्खता वाली, अज्ञानता वाली सोच थी।

निरंकारी राजपिता जी ने कहा कि दुनिया में परमात्मा के साथ रिश्ता है, वो किसी न किसी कारण है, कहीं डर से, कहीं किसी मांग के लिए, कहीं अपनी गिनती किसी भक्त की श्रेणी में करवाने के लिए है। परमात्मा से रिश्ता रखने के हर किसी के अलग अलग कारण है।

निरंकारी राजपिता जी ने शायर की पंक्तियां पड़ी, “हैरत है तुम को देख के मस्जिद में ऐ ‘ख़ुमार’. क्या बात हो गई जो ख़ुदा याद आ गया.”

इसका कारण ये है कि मानव का परमात्मा से रिश्ता किसी काम से है, संसार के हालात ऐसे है कि अगर कोई सिर सजदे में झुकता है तो सब हैरान होते हैं, हैरत होती है की क्या बात है कि कोई सिर सजदे में झुका है, पूछा जाता है कि है कि क्या बात हो गई, बिज़िनिस में नुकसान हो गया, कोई कमी रह गई…. तो परमात्मा को साथी बनाने आए हो, कहीं जन्नत की आस है या दोज़ख का डर है। क्या बात हो गई जो खुदा याद आ गया।

निरंकारी राजपिता जी ने कहा कि अब इंसान की भी गल्ती नहीं, पैदा हुआ तो यही रिश्ता देखा, जो खुदा के साथ बनाया हुआ है। स्कूल गया पेपर हुए तो ये सीखने को मिला कि भगवान का नाम लेकर पेपर देना तो नंबर आएंगे, भगवान का नाम लेकर मैच खेलना तो जीत जाओगे, भगवान का नाम लेकर इंटरव्यू पर जाना तो काम बन जाएगा। इंसान की भी गल्ती नहीं है, जन्म होते ही जो सिखाया गया वहीं पढ़ता गया।

लेकिन आज भी परमात्मा को जान लेने के बावजूद लोग दुनियावी बातों में फंसे हैं, इंसान के मन में आ जाता है कि दो दो संगत भी लूं, सेवा भी ज्यादा कर लेता हूं, शायद ये भी भाव आ जाते हैं, माया ज्यादा भेंट कर दी जाए, सेवा ज्यादा कर दी जाए

निरंकारी राजपिता जी ने कहा कि किसी भी रूप में परमात्मा के साथ अगर इस तल पर रिश्ता निभाया जा रहा है, किसी की गल्ती नहीं है, सिखाया ही यही गया है, जहां काम पूरा हुआ तो वो दर सच्चा, बाकी सब झूठे।

सारी दुनिया परमात्मा के साथ इसी तल का रिश्ता बना कर बैठी है। यही कारण है कि इस भ्रम, पाखंड के कारण इंसान का शोषण हो रहा है।

संसार में आज भी यही अज्ञानता है जो फैली हुई है। परमात्मा का नाम लेकर कैसे-कैसे काम होता है। जन्नत के सपने दिखा हैवानियत के काम करवा लिए जाते हैं। क्योंकि पढ़ाय़ा हुआ है तो परमात्मा का नाम लिया है तो कुछ मिलता है।

निरंकारी राजपिता रमित जी ने कहा कि हम टीवी पर फिल्मों में देखते हैं, वहां हीरो अपने एग्ज़ाम से पहले मंदिर की घंटी बजाता है। वहां पर भी कोई बड़ी उपलब्धी प्राप्त करने से एक सीन पहले कहीं सजदे किए जा रहे हैं। ये सब देख हमारा ये पाठ पक्का होता जाता है। भ्रम, अज्ञानता पक्की होती जाती है।

निरंकारी राजपिता जी ने कहा कि अगर हमारा रिश्ता अभी भी इसी तल पर चल रहा है तो हम जो मूल सौदा है उससे अभी तक वंचित हैं। बशर्ते दुनियावी काम जो होने हैं होते हैं, वो तो उनके भी होता हैं, जो कहीं सजदा नहीं कर रहे।

दुनियावी तौर पर देखा जाए तो उपलब्धियां उनके पास भी बहूत हैं, जो नास्तिक हैं। अगर इसी परमात्मा से लेन देन वाला रिश्ता बनाने से काम पूरे होते तो जो नास्तिक हैं उनका तो कोई काम होना ही नहीं चाहिए, कोई उपलब्धी नहीं होनी चाहिए।

दुनिया परमात्मा से लेन देन वाले रिश्ते निभा रही है, जिसके जो काम होने हैं परमात्मा ने करने ही है, जिसे जो देना है वो तो देना ही है। ऐसा नहीं कि परमात्मा को अच्छा लगता है इंसान रोए या गिड़गिड़ाए। परमात्मा ऐसे इंसान वाले भाव से नहीं चल रहा।

निंरकारी राजपिता जी ने कहा कि परमात्मा इस बात का से खुश नहीं होता कि इंसान ने नाम अच्छे से लिया, एक टांग पर खड़े होकर इतने घंटे मेरी तपस्या की, नंगे पांव जाकर माथा टेका, बल्कि परमात्मा तो दुखी होता है कि ये इंसान खुद को पीढ़ा दे रहा है। संसार में फंसा हुआ इंसान ही ऐसी बाते करता हैं।

निरंकारी राजपिता जी ने कहा कि जब तक सद्गुरू का ज्ञान नहीं आया तब तक हम भी इसी तल पर जी रहे थे।

राजपिता जी ने कहा कि आज संसार में परमात्मा के नाम पर पाखंड, डर, भय, शोषण इसलिए हो रहा है क्योंकि इंसान इन शब्दों पर शोषित होने के लिए तैयार बैठा है।

निरंकारी राजपिता जी ने कहा कि जब परमात्मा का बोध होता है, गुरू कृपा करता है तो जो भाग्य में भी नहीं होता वो भी मिलता है। हर व्यक्ति के साथ हुआ है।

निरंकारी राजपिता जी ने कहा कि सद्गुरू बार-बार संतो को चेतन कर हे हैं। जो मूल है उससे वंचित नहीं रहना।

लेकिन इंसान सोने यानिकि मूल का सौदा भूल कर पीतल के पीछे लग गए। पीतल लाएंगे तो खामियां रहेंगी, पीतल टेढा है, खराब है, जंग लगा हुआ है।

ऐसे ही हम लोग पीतल के पीछे लग कर सोने से वंचित रह जाएंगे। सोना यानिकि मूल से वंचित रह गए तो यही गिले शिकवे चलते रहेंगे।

निरंकारी राजपिता जी ने कहा कि संतो का जीवन देखते हैं, जब सही मायने में परमात्मा जीवन में आता है तो क्रांति होती है। क्रांति का मायना ये है कि जिस जगह परमात्मा के साथ ये पाखंड का रिश्ता, झूठ के वायदे होते हैं सब खत्म हो जाते हैं, अंधकार वाली परिभाषा खत्म हो जाती है। सच की परिभाषा मिलती है, असल परमात्मा की परिभाषा मिलती है जैसा ये (परमात्मा) है, अपनी पहचान मिल जाती है।

संसार के सभी काम करता हुआ भक्त हर वक्त इसी पमात्मा में रहता है। संसार की सारी उपल्बधियां प्राप्त करते हुए परमात्मा के साथ रहता है।

निरंकारी राजपिता जी ने कहा कि मंदिर, मस्जिद में हैं तो हम सिर्फ चंद मिनटों के लिए होते हैं। लेकिन जब ज्ञान हो जाए तो फिर इंसान कहीं भी हो घर हो, बाहर हो… कहीं भी हो हर वक्त परमात्मा अंग संग मानता है।

निरंकारी राजपिता जी ने कहा कि ये अज्ञानता है कि परमात्मा एक साधन है, टूल है किसी मंजिल को प्राप्त करने का।

भक्तों को ज्ञान हो जाता है कि परमात्मा ही मेरी मंजिल है, ये साधन नहीं साध्य है। ये अवस्था सत्य वाली है, इस अवस्था जब अज्ञानता मिट जाती है, जितने भ्रम हैं, अंधविश्वास हैं, सब खत्म हो जाते हैं।

फिर भक्ति की शुरूआत होती है, जीवन में प्रेम आ जाता है। क्योंकि जहां लेन देन होगा वहां प्रेम कहां आएगा। परमात्मा को जानें गए तो तभी तो भ्रम मिटेंगे।

परमात्मा का ज्ञान मिलने पर ही पता चलता है कि पता चलेगा कि असल में बात किसकी हो रही है। फिर पता चलता है कि जो हर पल अंग संग है उसे ढूंढने कहां कहां जा रहे थे। ये अवस्था सद्गुरू की कृपा से आती है। आत्मा का कल्यान होता है।

यही आवाज भक्तजन सारे संसार को देते हैं। आओ रब्ब दे दर्शन कर लो… जान लो… मेरे सारे भ्रम खत्म हुए है, आप भी कर लो।

प्रभु का ज्ञान मिलने पर, परमात्मा को जान लेने पर… जीवन भर के सारे विपरीत कर्म सीधे हो जाते हैं। फिर समझ में आता है कि इतनी सीधी राह को इंसान ने खुद ही उलझा रखा था।

निरंकारी राजपिता जी ने कहा कि सद्गुरू की कृपा से ही परमात्मा की प्राप्त हो सकती है, जाना जा सकते हैं, जब सद्गुरू कृपा करते हैं, हमारी औकात से बढ़कर सारे काम होते हैं, लेकिन ये तो कुछ भी नहीं है। निरंकारी पिता जी ने कहा कि मूल सौदा देने सद्गुरू आया है। इसके दर पहुंच कर भी मूल से वंचित न रह जाए।

इसके दर्शन करके भी उस ऊपरी तल पर न रह जाए। निरंकारी राजपिता जी ने मानवता को वैर, ईष्या, द्वेष त्याग कर परमात्मा से जुड़ने का संदेश दिया।

जालंधर ब्रांच के सयोजक गुरचरण सिंह जी ने निरंकारी समागम संपन्न में सहयोग के लिए जालंधर नगर निगम, जिला प्रशासन और पुलिस को सहयोग के लिए धन्यवाद किया।

निरंकारी संत समागम में राज्यसभा सदस्य अशोक मित्तल, मेयर विनित धीर, पूर्व सीपीएस केडी भंडारी, वरिष्ठ भाजपा नेता अमित तनेजा, पूर्व सांसद सुशील रिंकू, पूर्व विधायक शीतल अंगुराल, पूर्व विधायक राजेन्द्र बेरी, पूर्व मंत्री मनोरंजन कालिया, विधायक सुखविन्द्र कोटली, पूर्व डीसीपी राजेन्द्र सिंह चंदन ग्रेवाल सहित शहर के अन्य प्रतिष्ठित लोगों ने निरंकारी राजपिता जी का आर्शीवाद लिया।

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