Prabhat Times
New Delhi नई दिल्ली। (mit research 2025 reveals overdependence on chatgpt) आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कि एआई के तेजी से बढ़ते इस्तेमाल ने पढ़ाई और काम करने के तरीकों को काफी हद तक बदल दिया है.
खास करके ओपन आई के चैट जीपीटी ने जिसे दुनिया भर में करोड़ों लोग अपनी राइटिंग और बाकी नॉलेज के लिए उपयोग कर रहे हैं.
वहीं चैट जीपीटी का बढ़ते इस्तेमाल के साथ ही यह सवाल भी सामने आ रहे हैं कि क्या एआई का यह आसान तरीका हमारे दिमाग को कमजोर कर रहा है.
इसी सवाल का जवाब ढूंढने के लिए MIT मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के रिसचर्स ने हाल ही में एक स्टडी की है.
चलिए तो आज आपको बताते हैं की MIT की इस रिसर्च में एआई को लेकर क्या चौंकाने वाला सच सामने आया है.
क्या है MIT की रिसर्च
MIT मीडिया लैब, वेल्सली कॉलेज और मासआर्ट के रिसर्चर की एक टीम ने यह रिसर्च की है. इस स्टडी में बोस्टन की कई यूनिवर्सिटी के 54 स्टूडेंट्स को तीन ग्रुप में बांटा गया था.
-जिसमें पहला LLM ग्रुप था इस ग्रुप के स्टूडेंट ने निबंध लिखने के लिए चैट जीपीटी का इस्तेमाल किया था.
-इसके अलावा दूसरे ग्रुप को सर्च इंजन ग्रुप में बांटा गया था. इस ग्रुप के स्टूडेंट ने निबंध लिखने के लिए सिर्फ गूगल सर्च जैसी चीजों का ही प्रयोग किया.
-इसके बाद तीसरे ग्रुप को ब्रेन ओनली ग्रुप में बांटा गया था. जिसके स्टूडेंट्स ने बिना किसी मदद जैसे चैट जीपीटी की मदद न लेकर खुद लिखा था.
इस रिसर्च के दौरान पार्टिसिपेंट्स के दिमाग की गतिविधियों को इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम टेक्नोलॉजी से मॉनिटर किया गया. जिसमें यह देखा गया था कि किस तरीके से दिमाग काम कर रहा है.
साथ ही दिमाग कितना एक्टिव है और चैट जीपीटी का उपयोग करने वाले लोगों का दिमाग कितनी जानकारी को याद रख पा रहा है.
रिसर्च का क्या आया था रिजल्ट
स्टडी में पाया गया कि जो स्टूडेंट सिर्फ चैट जीपीटी पर निर्भर थे. उनके दिमाग की सक्रियता सबसे कम थी.
चैट जीपीटी का इस्तेमाल करने वाले स्टूडेंट्स के मुकाबले बिना किसी टेक्नॉलोजी के खुद से निबंध लिखने वालों का ब्रेन सबसे ज्यादा एक्टिव था. वही सर्च इंजन वाले स्टूडेंट्स की स्थिति इन दोनों के बीच वाली थी.
अपने ही कंटेंट से कम जुड़ाव
इस रिसर्च में जब स्टूडेंट्स को अपने ही लिखे निबंध को दोबारा बताने या फिर उसके कुछ पार्ट कोट करने के लिए कहा गया तो चैट जीपीटी का उपयोग करने वाले स्टूडेंट सबसे ज्यादा अपने निबंध को भूल गए थे.
उन्होंने अपने ही लिखे हुए कंटेंट से कम जुड़ाव महसूस किया. इसके बाद इसे रिसचर्स ने कॉग्निटिव ऑफ लोडिंग कहा इसका मतलब है कि दिमाग का काम एआई पर डाल देना.
चैट जीपीटी से लिखे गए निबंध का फ्लो बेहतर लेकिन गहराई की कमी
MIT की रिसर्च में पाया गया कि चैट जीपीटी से लिखे गए निबंध की संरचना, ग्रामर और फ्लो तो काफी अच्छा था. लेकिन उस निबंध में ओरिजिनल डाइवर्सिटी और गहराई की काफी कमी थी.
वहीं दिमाग से लिखने वाले ब्रेन ओनली ग्रुप के ऐसे को ज्यादा क्रिटिकल थिंकिंग और फुल डायवर्स वोकैबलरी वाला माना गया था.
एआई की मदद दिमाग को कर रही कमजोर
MIT की तरफ से किए गए इस रिसर्च की सबसे बड़ी फाइंडिंग यही थी कि चैट जीपीटी जैसे आई टूल्स हमें कई प्रकार की सुविधा तो देते हैं.
लेकिन इन पर ज्यादा निर्भरता हमारे दिमाग की सक्रियता, याददाश्त और क्रिएटिविटी को नुकसान पहुंचा रही है.
खास तौर पर एजुकेशन सेक्टर में जब पढ़ाई के समय में स्टूडेंट्स की सोचने की क्षमता विकसित होनी चाहिए. उस समय चैट जीपीटी के इस्तेमाल से उनकी सोचने की क्षमता और ज्यादा कम हो रही है.
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