Prabhat Times
जालंधर। (Jalandhar Lok Sabha By-Poll SAD-BSP, AAP, Congres, BJP) जालंधर लोक सभा उप चुनाव बेहद ही रोमांचक होते जा रहे हैं। राजनीतिक पार्टियों ने हालात ऐसे बना दिए हैं कि नेताओँ के साथ साथ खासकर वोटर असमंजस में हैं।
उठापटक, बार-बार दल-बदलना इतनी तेजी से चल रहा है कि खुद वोटर परेशान हैं। वोटर समझ नहीं पा रहे कि उनका नेता किस पार्टी में है या फिर सुबह किस पार्टी में होगा।
चौधरी संतोख सिंह की मृत्यु के पश्चात रिक्त हुई जालंधर लोकसभा उप चुनाव इस समय सभी राजनीतिक दल यानिकि मौजूदा सरकार आप, भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और शिरोमणी अकाली दल-बहुजन समाज पार्टी गठबंधन के लिए नाक का सवाल बना हुआ है। अचानक सिर पड़े इन चुनावों के परिणाम बताएंगे कि कौन सा दल कितने पानी में हैं।
सहमी-सहमी है सरकार
इतिहास गवाह है कि जब भी चुनाव होते हैं तो आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल चुनाव परिणामों की भविष्यवाणी पहले ही कर देते हैं, लिख कर देते हैं कि कौन सी सीट से कौन जीत रहा है और कौन हार रहा है। अरविंद केजरीवाल, भगवंत मान बेहद कौंफीडैंट होते हैं।
लेकिन बात करें अचानक सिर पड़े चुनावों की तो इस बार आप सुप्रीमो कौंफीडैंट नहीं लग रहे। मतदान के दो दिन रहते अभी तक आप सुप्रीमो ने कोई भविष्यवाणी नहीं की है।
अगर सीएम भगवंत मान द्वारा पिछले दिनों मे दिए गए ब्यानों पर गौर किया जाए तो वे वोटरों के आगे ‘तरलो-मच्छी’ होते नज़र आ रहे हैं।
सीएम मान के ब्यान, ”एक साल और दे दो, रिंकू को जिताओ, हमारा हौंसला बढ़ाओ, हम और मेहनत से विकास करेंगे” सीएम के इन ब्यानों में कौंफीडैंस कम नज़र आ रहा है।
आप सरकार का कई नेता तो चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद से जालंधर में हैं और रोजाना आप के मंत्री विधायक लगातार जालंधर लोकसभा हल्का में आकर प्रचार कर रहे हैं।
सीएम मान खुद हर एक दिन छोड़ कर जालंधर में रोड शो कर रहे हैं। सीधे शब्दों में कहा जाए तो चुनावों में आप सरकार का पूरा जोर लगा हुआ है।
आप सरकार द्वारा लगाए जा रहे जोर से स्पष्ट है कि आप के चुनाव रणनीतिकारों को कहीं न कहीं ‘अजीब सा डर’ सता रहा है।
एक साल के कार्यकाल में जालंधर के विधायकों पर उठी अंगुलियां भी आप के विजय रथ के पहियों को जकड़े हुए है।
कांग्रेस ‘ओवर कोंफीडैंट’
बात करें कांग्रेस पार्टी और नेताओं की। कांग्रेसी इस समय ओवर कोंफीडैंट दिख रहे हैं। ऐसा नहीं कि पार्टी की कोई उपलब्धी है या पार्टी ने जालंधर के वोटरों के लिए कुछ खास किया या वायदा किया है।
कांग्रेस पार्टी की तरफ से चुनावों में ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा। कांग्रेस और उनका कैंडीडेट के ओवर कोंफीडेंट का कारण चौधरी परिवार से सिंपथी और मौजूदा सरकार की कथित विरोधता है।
इसी कारण से कांग्रेस ज्यादा कहीं नज़र नहीं आ रही है। उम्मीदवार सिर्फ और सिर्फ पार्टी वोट पर ही निर्भर होते दिख रहे हैं।
इसी ओवर कोंफीडैंस के कारण मतदान से महज दो दिन पहले भी कई जालंधर लोकसभा हल्का के ज्यादातर ऐसे ईलाके हैं, जहां कांग्रेसी पहुंचे नहीं हैं।
कांग्रेसी कैंडीडेट खुद सिंपथी वोट पर तथा जीते हुए विधायकों पर निर्भर है। अगर सूत्रों की मानें तो कांग्रेसी वर्कर भी इस तरीके के चुनाव प्रचार से ज्यादा खुश नहीं है।
भाजपा ‘वॉचिंग मोड’ पर
भारतीय जनता पार्टी हाईकमान पूरी तरह से वॉचिंग मोड पर है। भाजपा के लिए जालंधर लोकसभा उप चुनाव महज एक टीज़र है।
भाजपा हाईकमान को पता है कि वे अपने बलभूते पर चुनाव नहीं जीत सकते, लेकिन केंद्रीय रणनीतिकारों द्वारा इस चुनावों में भाजपा पंजाब के नेताओं का वोटरों में ‘भार-तोल’ चैक किया जा रहा है। भाजपा हाईकमान की नज़रें सीधे तौर पर 2024 चुनावों पर है।
इन चुनाव नतीजों के आधार पर ही और 2024 चुनावों से पहले भाजपा में बड़े बड़े फेरबदल की संभावनाओँ से खुद भाजपा नेता भी इंकार नहीं कर रहे।
अकाली-बसपा कर सकता है बड़ा उल्ट-फेर, ये है वजह
लोकसभा उप चुनाव में शिरोमणी अकाली दल-बहुजन समाज पार्टी गठबंधन में चुनाव लड़ रहे हैं। आप, भाजपा के उम्मीदवारों की बात करें तो दोनो पार्टियों के कैंडीडेट दलबदलू हैं। जबकि कांग्रेस की उम्मीदवार चौधरी संतोख सिंह परिवार से हैं। कांग्रेसी केंडीडेट का पॉलिटिकल एक्सपीरियंस काफी कम है।
ऐसी स्थिति में शिअद-बसपा का कैंडीडेट डॉ. सुखविन्द्र कुमार सुक्खी बेहद ही सशक्त दिख रहा है। नॉन कंट्रोवर्शियल और अपनी पार्टी के वोट बैंक पर खासा प्रभाव रखने वाले डॉ. सुक्खी की उम्मीदवारी शिअद सुप्रीमो सुखबीर सिंह बादल की दूरदर्शी सोच का नतीजा है।
शिरोमणी अकाली दल ने बेशक विधानसभा चुनावों में हार देखी, लेकिन आप के एक साल में हुआ कामों, चर्चाओँ के कारण अब बिखरा वोट बैंक वापस एकजुट होता नज़र आ रहा है।
मतदान से ठीक पहले शिरोमणी अकाली दल के सर्वेसर्वा प्रकाश सिंह बादल की देहांत से अकाली दल और अकाली दल से जुड़े परिवारों में शोक की लहर है।
सरदार बादल की अंतिम अरदास के मौके पर सरदार सुखबीर बादल द्वारा दिए गए इमोशनल संबोधन से अकाली दल एकजुट होता नज़र आ रहा है। बिखरा वोटबैंक फिर से एक ‘तकड़ी’ में आता दिख रहा है।
अगर कहें कि सरदार बादल के देहांत के कारण सिंपथी वोट शिअद-बसपा के खाते में आएगी तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
जालंधर लोकसभा हल्का में दलित समाज का एक तिहाई से ज्यादा वोट है। बेदाग, स्वच्छ और ईमानदार छवि वाले डॉ. सुक्खी का दलित वोट बैंक में भी खासा प्रभाव है।
राजनीतिक माहिरों के मुताबिक पिछले लोकसभा चुनावों में अकेले चुनाव लड़ी बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार को 2 लाख से ज्यादा वोट पड़े थे। जबकि अकाली-भाजपा के उम्मीदवार को लगभग 3.66 लाख वोट पड़े थे।
ऐसी स्थिति में अगर शिरोमणी अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी का वोट जुड़ जाए तो चुनाव नतीज़ों में किसी बड़े ऐतिहासिक उल्ट-फेर से इंकार नहीं किया जा सकता।
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