Prabhat Times
New Delhi नई दिल्ली। (donald trump us stops using military planes to deport illegal immigrants) राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सत्ता में आते है अमेरिका में अवैध तरीके से रह लोगों को उनके देशों में डिपोर्ट कर शुरू कर दिया था।
जिस तरीके से लोगों को जंजीरों और हथकड़ी लगाकर सैन्य विमानों के जरिए डिपोर्ट किया जा रहा था है, उसने सभी को हैरान कर दिया।
अबट्रंप प्रशासन ने फैसला किया है कि अब अवैध प्रवासियों को डिपोर्ट करने के लिए अमेरिकी सैन्य विमानों का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा, क्योंकि इसकी लागत काफी ज्यादा आ रही है।
जानकारी के मुताबिक भारत के लिए तीन डिपोर्टेशन फ्लाइट्स में से हर एक की लागत 3 मिलियन डॉलर यानी करीब 300000 लाख डॉलर थी।
रिपोर्ट में बताया गया कि ग्वांतानामो के लिए गई फ्लाइट, जिसमें केवल एक दर्जन लोग थे, उसकी लागत प्रति प्रवासी कम से कम 20,000 डॉलर थी।
लगभग 10 मिलियन डॉलर बहाने के बाद अब ट्रंप ने फैसला लिया है कि सेन्य प्लेन का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।
अमेरिकी अखबार के मुताबिक आखिरी बार 1 मार्च को सैन्य विमान से अवैध प्रवासियों को डिपोर्ट किया गया था।
रिपोर्ट के मुताबिक, अब ऐसे उपायों पर रोक को बढ़ाया जा सकता है या स्थायी किया जा सकता है।
रिपोर्ट में बताया गया कि जनवरी में ट्रंप के पदभार ग्रहण करने के तुरंत बाद ही अमेरिका ने कुछ प्रवासियों को उनके अपने देशों या ग्वांतानामो बे में सैन्य अड्डे तक पहुंचाने के लिए सैन्य विमानों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था।
हालांकि, यह कदम महंगा ट्रंप प्रशासन के लिए महंगा पड़ रहा है। ट्रंप प्रशासन ने कथित तौर पर डिपोर्टेशन के लिए सैन्य विमानों का इस्तेमाल इसलिए किया, क्योंकि वह दुनिया में एक मैसेज भेजना चाहते थे कि देश में अवैध रूप से रह रहे अप्रवासियों के प्रति उनका रुख कितना सख्त है।
रक्षा सचिव पीट हेगसेथ ने पिछले हफ्ते ग्वांतानामो बे की यात्रा के दौरान C-130 विमान से प्रवासियों को आते देखने के बाद कहा, “मैसेज साफ है: अगर आप कानून तोड़ते हैं, अगर आप अपराधी हैं, तो आप ग्वांतानामो बे पहुंच सकते हैं।”
फ्लाइट-ट्रैकिंग डेटा के अनुसार, ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका ने C-17 विमानों का इस्तेमाल करके लगभग 30 डिपोर्ट फ्लाइट चलाई गईं और C-130 विमानों पर लगभग एक दर्जन उड़ानें संचालित की हैं। गंतव्यों में भारत, पेरू, ग्वाटेमाला, होंडुरास, पनामा, इक्वाडोर और ग्वांतानामो बे शामिल हैं।
अवैध प्रवासियों के डिपोर्टेशन की देखरेख पारंपरिक रूप से होमलैंड सुरक्षा विभाग द्वारा की जाती है, जो इस काम के लिए कमर्शियल फ्लाइट का इस्तेमाल करता है। ट्रंप प्रशासन प्रवासियों को अपनी कठोर नीतियों के बारे में मैसेज देना चाहता था, इसलिए उन्होंने सैन्य विमानों का इस्तेमाल किया।
हालांकि, WAJ की रिपोर्ट में कहा गया है कि इन विमानों ने लंबे रूट अपनाए और कम प्रवासियों को पहुंचाया। इससे टैक्सपेयर्स पर काफी ज्यादा बोझ पड़ा, क्योंकि कमर्शियल फ्लाइट के मुकाबले ये फ्लाइट काफी ज्यादा महंगी पड़ रही हैं।
रिपोर्ट में पाया गया कि भारत के लिए तीन डिपोर्टेशन फ्लाइट्स में से हर एक की लागत 3 मिलियन डॉलर यानी करीब 300000 लाख डॉलर थी।
रिपोर्ट में बताया गया कि ग्वांतानामो के लिए गई फ्लाइट, जिसमें केवल एक दर्जन लोग थे, उसकी लागत प्रति प्रवासी कम से कम 20,000 डॉलर थी।
इसकी तुलना में, सरकारी डेटा से पता चलता है कि एक नॉर्मल US इमिग्रेशन एंड कस्टम एनफोर्समेंट की फ्लाइट की लागत प्रति घंटे 8,500 डॉलर है। WSJ की रिपोर्ट के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय यात्राओं के लिए यह आंकड़ा प्रति घंटे 17,000 डॉलर के करीब है।
लेकिन, भारी माल और सैनिकों को ले जाने के लिए डिज़ाइन किए गए C-17 विमान को उड़ाने की लागत 28,500 डॉलर प्रति घंटा है, ऐसा विमान उपलब्ध कराने वाली अमेरिकी परिवहन कमान के अनुसार है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि उड़ान की लागत बढ़ने के साथ ही C-17 विमानों को ज्यादा लंबा रास्ता भी अपनाना पड़ता है, क्योंकि वे मेक्सिको के एयर स्पेस का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, जिससे मध्य और दक्षिण अमेरिका के लिए फ्लाइट्स में कई घंटे का समय बढ़ जाता है।
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