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Jalandhar जालंधर। (NHS Hospital jalandhar HoLEP surgery) एन.एच.एस अस्पताल जालंधर ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि वह अत्याधुनिक स्वास्थ्य सेवाओं का प्रमुख केंद्र है।

हाल ही में एक जटिल यूरोलॉजिकल (मूत्र संबंधी) केस में, कपूरथला के रहने वाले एक मरीज का इलाज अत्याधुनिक HoLEP तकनीक से सफलतापूर्वक किया गया, जो अस्पताल की उन्नत सुविधाओं और अनुभवी डॉक्टरों की टीम की काबिलियत का प्रमाण है।

मरीज और समस्या

कपूरथला निवासी जोगा सिंह 2 जून 2025 को एन.एच.एस अस्पताल जालंधर पहुंचे। उन्हें पेशाब करने में अचानक रुकावट हो गई थी।

जांच में पता चला कि उनकी प्रोस्टेट ग्रंथि बहुत अधिक बड़ी हो गई थी — करीब 150 ग्राम की, जो सामान्य से काफी अधिक है और तुरंत इलाज की जरूरत थी।

मामला इसलिए भी जटिल था क्योंकि श्री सिंह पहले स्ट्रोक (अधरंगी) से पीड़ित रह चुके थे, उन्हें डायबिटीज थी और वह लंबे समय से ब्लड थिनर (खून पतला करने वाली दवाएं) ले रहे थे।

इस वजह से सर्जरी के दौरान खून बहने, संक्रमण, खून चढ़ाने या यहां तक कि डायलिसिस की संभावना भी थी, जिससे मरीज और उनके परिवार वाले काफी चिंतित थे।

जोखिम और ज़रूरत का संतुलन

इतने बड़े प्रोस्टेट में दवाओं से इलाज संभव नहीं था। लेकिन सामान्य ऑपरेशन करना भी खतरनाक हो सकता था, क्योंकि श्री सिंह की हालत पहले से कमजोर थी। ज्यादा खून बहने की स्थिति में गंभीर खतरा हो सकता था।

एन.एच.एस अस्पताल के सीनियर यूरोलॉजिस्ट डॉ. सतिंदर पाल अग्रवाल (MCh Urology) के अनुसार, मुख्य चुनौती यह थी कि प्रोस्टेट को इस तरह निकाला जाए जिससे खून कम बहे, संक्रमण न हो, किडनी को कोई नुकसान न पहुंचे और मरीज को खून चढ़ाने की ज़रूरत न पड़े।

HoLEP तकनीक: एक आधुनिक समाधान

एक विशेषज्ञ टीम जिसमें यूरोलॉजी, नेफ्रोलॉजी, कार्डियोलॉजी और एनेस्थीसिया शामिल थे, ने मिलकर निर्णय लिया कि सिंह का इलाज HoLEP (Holmium Laser Enucleation of the Prostate) तकनीक से किया जाएगा।

यह एक आधुनिक और कम तकलीफ देने वाली सर्जरी है, जिसमें एक लेज़र की मदद से प्रोस्टेट को सटीकता से निकाला जाता है।

इस तकनीक में खून बहुत कम बहता है, जो ब्लड थिनर लेने वाले मरीजों के लिए बेहद उपयुक्त है।

डॉ. अग्रवाल ने बताया, “HoLEP से हम बिना ज्यादा खून बहाए प्रोस्टेट को आसानी से निकाल सकते हैं। यह हाई-रिस्क मरीजों के लिए सबसे सुरक्षित विकल्पों में से एक है।”

सर्जरी और नतीजा

यह सर्जरी स्पाइनल एनेस्थीसिया के साथ की गई और पूरी तरह सफल रही। न तो ऑपरेशन के दौरान और न ही बाद में खून चढ़ाने की ज़रूरत पड़ी।

सिंह को ऑपरेशन के कुछ ही घंटों बाद रिकवरी वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया और उनकी हालत तेजी से सुधरी। सिर्फ दो दिन बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।

सिंह ने कहा, “मैं डायलिसिस या अन्य जटिलताओं की आशंका से डर कर आया था, लेकिन दूसरे ही दिन बिना किसी दर्द के घर लौट गया।”

फॉलो-अप और भविष्य की स्थिति

फॉलो-अप में सभी रिपोर्ट्स सामान्य आईं। किडनी की कार्यक्षमता ठीक थी, पेशाब की रुकावट पूरी तरह खत्म हो चुकी थी और कोई भी समस्या नहीं बची थी। श्री सिंह ने डॉ. अग्रवाल का आभार जताते हुए कहा कि “डॉक्टर साहब ने मुझे नई जिंदगी दी है।”

सफलता की पूरी टीम

यह सफलता केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि पूरे अस्पताल की टीम की मेहनत का परिणाम है — एनेस्थीसिया टीम, नेफ्रोलॉजिस्ट, यूरोलॉजिस्ट, नर्सिंग स्टाफ और बाकी सभी का योगदान रहा।

अस्पताल प्रबंधन ने पूरी टीम की प्रशंसा की और कहा, “यह केस साबित करता है कि जब अनुभव, तकनीक और सेवा-भाव मिलते हैं, तो सबसे कठिन केस भी हल हो सकता है।”

एन.एच.एस अस्पताल: उन्नत यूरोलॉजी तकनीक का केंद्र

एन.एच.एस अस्पताल लंबे समय से अत्याधुनिक तकनीकों के प्रयोग में अग्रणी रहा है। डॉ. सतिंदर पाल अग्रवाल की नेतृत्व में यहां प्रोस्टेट, ब्लैडर स्टोन, किडनी ट्यूमर जैसे जटिल मामलों का सफल इलाज किया जा रहा है।

अस्पताल में HoLEP के अलावा हाई-रेजोल्यूशन इमेजिंग, साइलेंट MRI, CT स्कैनर और आधुनिक पैथोलॉजी सुविधाएं भी मौजूद हैं।

इनसानी स्पर्श और आधुनिकता का मेल

एन.एच.एस अस्पताल का फोकस सिर्फ तकनीक पर नहीं, बल्कि इंसानियत और सहानुभूति पर भी है। मरीज को समय पर, उनकी ज़रूरत के हिसाब से और सम्मानजनक इलाज देना यहां की प्राथमिकता है।

डॉ. अग्रवाल ने कहा, “हमारा लक्ष्य सिर्फ इलाज करना नहीं, बल्कि मरीज को फिर से स्वस्थ और आत्मविश्वासी बनाना है।”

हाई-रिस्क मामलों के लिए आशा की किरण

जिन मरीजों को पहले से स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं, वे सर्जरी से डरते हैं। लेकिन श्री सिंह का केस यह दिखाता है कि सही डॉक्टर, सही तकनीक और सही देखभाल से चमत्कारी परिणाम मिल सकते हैं।

जागरूकता की ज़रूरत

एन.एच.एस अस्पताल मानता है कि HoLEP जैसी तकनीकों के बारे में लोगों को जानकारी देना ज़रूरी है। कई मरीज जानकारी के अभाव में अनावश्यक तकलीफें झेलते हैं।

डॉ. अग्रवाल कहते हैं, “अभी भी बहुत से लोग सोचते हैं कि अगर ब्लड थिनर ले रहे हैं या पहले स्ट्रोक हुआ है, तो ऑपरेशन नहीं हो सकता। लेकिन ऐसा नहीं है — अब हमारे पास सुरक्षित विकल्प हैं।”

अस्पताल आने वाले समय में जागरूकता सेमिनार और शिविरों का आयोजन करेगा ताकि लोग प्रोस्टेट की समस्याओं, समय पर जांच और सही इलाज के बारे में जान सकें।

निष्कर्ष

जोगा सिंह के जटिल केस का सफल इलाज एन.एच.एस अस्पताल जालंधर की मेडिकल विशेषज्ञता, अत्याधुनिक तकनीक और समर्पण का उदाहरण है।

डॉ. सतिंदर पाल अग्रवाल और उनकी टीम ने यह साबित कर दिया कि आज की चिकित्सा विज्ञान में कोई भी केस असंभव नहीं है।

यह कहानी उन सभी के लिए आशा की किरण है, जो सोचते हैं कि जटिल स्थितियों में समाधान नहीं है। सही जानकारी, अनुभव और तकनीक से सबकुछ संभव है।

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