Prabhat Times
New Delhi नई दिल्ली। (Supreme Court Decision On Lawyers Right) सुप्रीम कोर्ट ने वकील-मुवक्किल गोपनीयता को लेकर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जिससे कानूनी पेशेवरों को बड़ी राहत मिली है.
कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि केंद्रीय जांच एजेंसियां जैसे ईडी, सीबीआई या पुलिस वकीलों से उनके क्लाइंट से जुड़े कोई सवाल नहीं पूछ सकते, जब तक मामला भारतीय साक्ष्य अधिनियम के विशेष अपवादों में न आए.
यह फैसला जांच एजेंसियों द्वारा वकीलों को समन जारी करने के बढ़ते मामलों पर स्वतः संज्ञान लेते हुए आया है.
कोर्ट ने कहा कि वकील-मुवक्किल के बीच की सभी बातचीत कानूनी रूप से गोपनीय है और बिना मुवक्किल की अनुमति के वकील से सवाल करना मौलिक अधिकारों का हनन है.
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपने फैसले में जोर दिया कि साक्ष्य अधिनियम वकील और क्लाइंट के संवाद की पूरी तरह रक्षा करता है.
कोर्ट ने कहा कि बिना मुवक्किल की स्पष्ट अनुमति के वकील से क्लाइंट से जुड़े सवाल पूछना वैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है.
यह गोपनीयता क्लाइंट को बेझिझक कानूनी सलाह लेने की स्वतंत्रता देती है, जो न्याय व्यवस्था की नींव है.
कोर्ट ने चेतावनी दी कि जांच एजेंसियां अब मनमाने ढंग से वकीलों को निशाना नहीं बना सकेंगी.
दो स्थितियों में ही वकील से सवाल
फैसले में विशेष अपवादों को भी स्पष्ट किया गया. कोर्ट ने कहा कि सिर्फ दो स्थितियों में ही वकील से सवाल किए जा सकते हैं-
पहला, अगर मुवक्किल ने वकील से किसी अवैध काम को अंजाम देने या उसमें शामिल होने के लिए कहा हो.
दूसरा, अगर वकील खुद किसी अपराध या धोखाधड़ी का प्रत्यक्षदर्शी हो, जो मुवक्किल ने किया हो. इन अपवादों के बाहर कोई छूट नहीं है.
कोर्ट ने धारा 132 का हवाला देते हुए कहा कि वकीलों को समन तभी जारी किया जाएगा, जब मामला इन अपवादों में आए और समन में अपवादों का स्पष्ट उल्लेख हो. बिना इस आधार के जारी समन अवैध होगा.
यह मामला जांच एजेंसियों द्वारा वकीलों को समन करने की बढ़ती प्रवृत्ति पर स्वतः संज्ञान से जुड़ा था.
सुप्रीम कोर्ट ने एक विशेष अनुमति याचिका में उठाए मुद्दे पर विचार करते हुए कहा कि हम इस याचिका के तहत जारी समन को खारिज करते हैं.
कोर्ट ने तर्क दिया कि ऐसे समन से अभियुक्त के मौलिक अधिकारों का हनन होता है, क्योंकि क्लाइंट ने वकील पर पूरा भरोसा जताया था.
यह न केवल गोपनीयता भंग करता है, बल्कि क्लाइंट की रक्षा करने की कानूनी प्रक्रिया को कमजोर करता है.
कोर्ट ने जांच एजेंसियों को निर्देश दिया कि वे अब गोपनीयता का सम्मान करें और मनमाने समन से बचें.
वकील समुदाय ने इस फैसले को ‘मनमाफिक’ बताते हुए स्वागत किया है.
बार काउंसिल्स का कहना है कि इससे वकीलों की स्वतंत्रता मजबूत होगी और क्लाइंट बिना डर के सलाह ले सकेंगे.
दूसरी ओर, जांच एजेंसियों के लिए यह झटका है, क्योंकि अब उन्हें अपवाद साबित करने का बोझ उठाना पड़ेगा.
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