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Chandigarh चंडीगढ़। (same sex marriage in india cji supreme court verdict) सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है.

SC कानून बनाने पर साफ कहा कि यह हमारे अधिकार में नहीं है. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में चार फैसले हैं. कुछ सहमति के हैं और कुछ असहमति के.

सीजेआई ने कहा, अदालत कानून नहीं बना सकता है, लेकिन कानून की व्याख्या कर सकता है. फैसले के दौरान सीजेआई और जस्टिस भट ने एक-दूसरे से असहमति जताई.

सीजेआई का कहना था कि निर्देशों का उद्देश्य कोई नई सामाजिक संस्था बनाना नहीं है. वे संविधान के भाग 3 के तहत मौलिक अधिकारों को प्रभावी बनाते हैं.

CJI ने कहा, CARA विनियमन 5(3) अप्रत्यक्ष रूप से असामान्य यूनियनों के खिलाफ भेदभाव करता है. एक समलैंगिक व्यक्ति केवल व्यक्तिगत क्षमता में ही गोद ले सकता है.

इसका प्रभाव समलैंगिक समुदाय के खिलाफ भेदभाव को मजबूत करने पर पड़ता है. विवाहित जोड़ों को अविवाहित जोड़ों से अलग किया जा सकता है.

उत्तरदाताओं ने यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड पर कोई डेटा नहीं रखा है कि केवल विवाहित जोड़े ही स्थिरता प्रदान कर सकते हैं.

CJI ने कहा कि मुझे जस्टिस रवींद्र भट्ट के फैसले से असहमति है. जस्टिस भट्ट के निर्णय के विपरीत मेरे फैसले में दिए गए निर्देशों के परिणामस्वरूप किसी संस्था का निर्माण नहीं होता है, बल्कि वे संविधान के भाग 3 के तहत मौलिक अधिकारों को प्रभावी बनाते हैं.

मेरे भाई जस्टिस भट्ट भी स्वीकार करते हैं कि राज्य यानी शासन समलैंगिक समुदाय के खिलाफ भेदभाव कर रहा है. वो उनकी दुर्दशा को कम करने के लिए अनुच्छेद 32 के तहत शक्तियों का प्रयोग नहीं करता है.

  • सीजेआई के फैसले में बड़ी बातें…
  • – यह ध्यान दिया गया है कि विवाहित जोड़े से अलग होना प्रतिबंधात्मक है क्योंकि यह कानून द्वारा विनियमित है लेकिन अविवाहित जोड़े के लिए ऐसा नहीं है.

  • – घर की स्थिरता कई कारकों पर निर्भर करती है, जिससे स्वस्थ कार्य जीवन संतुलन बनता है और स्थिर घर की कोई एक परिभाषा नहीं है और हमारे संविधान का बहुलवादी रूप विभिन्न प्रकार के संघों का अधिकार देता है.

  • – CARA विनियमन 5(3) असामान्य यूनियनों में भागीदारों के बीच भेदभाव करता है. यह गैर-विषमलैंगिक जोड़ों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा और इस प्रकार एक अविवाहित विषमलैंगिक जोड़ा गोद ले सकता है, लेकिन समलैंगिक समुदाय के लिए ऐसा नहीं है.

  • – कानून अच्छे और बुरे पालन-पोषण के बारे में कोई धारणा नहीं बना सकता है और यह एक रूढ़ि को कायम रखता है कि केवल विषमलैंगिक ही अच्छे माता-पिता हो सकते हैं. इस प्रकार विनियमन को समलैंगिक समुदाय के लिए उल्लंघनकारी माना जाता है.

  • – सीजेआई ने कहा, निर्देशों का उद्देश्य नई सामाजिक संस्था बनाना नहीं है. यह अदालत आदेश के माध्यम से केवल एक समुदाय के लिए शासन नहीं बना रही है, बल्कि जीवन साथी चुनने के अधिकार को मान्यता दे रही है.

5 जजों की संविधान पीठ ने सुनाया फैसला

बता दें कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ ने 11 मई को सुनवाई पूरी कर ली थी और फैसला सुरक्षित रख लिया था. इससे पहले 18 समलैंगिक जोड़ों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी.

याचिका में विवाह की कानूनी और सोशल स्टेटस के साथ अपने रिलेशनशिप को मान्यता देने की मांग की थी. याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली बेंच में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एसके कौल, एसआर भट्ट, हेमा कोहली और पीएस नरसिम्हा शामिल थे.

’22 देशों में कानूनी तौर पर स्वीकृति’

बताते चलें कि साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने ही सेम सेक्स रिलेशनशिप को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाला फैसला दिया था.

हालांकि, अभी तक समलैंगिक विवाह के लिए कानूनी दावा नहीं कर सकते हैं. दरअसल, IPC की धारा 377 के तहत समलैंगिक संबंधों को अपराध माना जाता था.

वहीं, दुनिया को देखा जाए तो 33 ऐसे देश हैं, जहां समलैंगिक विवाह को मान्यता दी गई है. इनमें करीब 10 देशों की कोर्ट ने सेम सेक्स मैरिज को मान्यता दी है.

इसके अलावा, 22 देश ऐसे हैं, जहां कानून बनाकर स्वीकृति मिली है. साउथ अफ्रीका और ताइवान ने कोर्ट के आदेश से इसे वैध माना है.

‘दुनिया के 64 देशों में सजा का प्रावधान’

साल 2001 में नीदरलैंड ने सबसे पहले समलैंगिक विवाह को वैध बनाया था. जबकि ताइवान पहला एशियाई देश था. कुछ बड़े देश ऐसे भी हैं, जहां सेम सेक्स मैरिज की स्वीकार्यता नहीं है.

इनकी संख्या करीब 64 है. यहां सेम सेक्स रिलेशनशिप को अपराध माना गया है और सजा के तौर पर मृत्युदंड भी शामिल है. मलेशियामें समलैंगिक विवाह अवैध है.

पिछले साल सिंगापुर ने प्रतिबंधों को खत्म कर दिया था. हालांकि, वहां शादियों की मंजूरी नहीं है.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, जापान समेत सात बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश भी सेम सेक्स मैरिज को कानूनी अनुमति नहीं देते हैं.

‘किन देशों में सेम सेक्स मैरिज को मान्यता?’

दुनिया के जिन 34 देशों में सेम सेक्स मैरिज को मान्यता दी गई है, उनमें क्यूबा, एंडोरा, स्लोवेनिया, चिली, स्विट्जरलैंड, कोस्टा रिका, ऑस्ट्रिया, ऑस्ट्रेलिया, ताइवान, इक्वेडोर, बेल्जियम, ब्रिटेन, डेनमार्क, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, आइसलैंड, आयरलैंड, लक्समबर्ग, माल्टा, नॉर्वे, पुर्तगाल, स्पेन, स्वीडन, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका, संयुक्त राज्य अमेरिका, कोलंबिया, ब्राजील, अर्जेंटीना, कनाडा, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड और उरुग्वे का नाम शामिल है.

इन देशों में दुनिया की 17 फीसदी आबादी रहती है. तीन देशों एंडोरा, क्यूबा और स्लोवेनिया ने पिछले साल ही वैध किया है.

‘किन 23 देशों में कानूनी मान्यता?’

ऑस्ट्रेलिया, आयरलैंड, स्विटजरलैंड, ऑस्ट्रिया, ब्राजील, कोलंबिया, कोस्टा रिका, इक्वाडोर, मैक्सिको, स्लोवेनिया, दक्षिण अफ्रीका, ताइवान, अमेरिका का भी नाम शामिल है.

‘किन देशों में सेम सेक्स मैरिज अवैध?’

पाकिस्तान, अफगानिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, मॉरिटानिया, ईरान, सोमालिया और उत्तरी नाइजीरिया के कुछ हिस्सों में सेम सेक्स मैरिज को लेकर बेहद सख्ती है. वहां शरिया अदालतों में मौत की सजा तक का प्रावधान है.

अफ्रीकी देश युगांडा में समलैंगिका का दोषी पाए जाने पर आजीवन कारावास और फांसी की सजा तक देने का प्रावधान है. 30 अन्य अफ्रीकी देशों में भी समलैंगिक संबंधों पर प्रतिबंध है. 71 देश ऐसे हैं, जहां जेल की सजा का प्रावधान है.

 ‘सेम सेक्स मैरिज की बढ़ने लगी स्वीकार्यता’

हाल ही में सेम सेक्स मैरिज को कानूनी तौर पर चिली और स्विट्जरलैंड ने स्वीकृति दी है. हालिया सर्वे बताते हैं कि सेम सेक्स मैरिज को लेकर लोगों में स्वीकार्यता भी बढ़ने लगी है.

स्वीडन में 94 फीसदी लोग सेम सेक्स मैरिज के समर्थन में देखे गए. Pew Research का सर्वे बताता है कि दुनियाभर के 24 देशों में 53 फीसदी लोगों ने माना है कि सेम सेक्स मैरिज को स्वीकार करना चाहिए.

IPSOS नाम की संस्था का सर्वे कहता है कि पूरी दुनिया में 70 फीसदी लोग मानते हैं कि शादी की अनुमति मिल जानी चाहिए.  सर्वे में शामिल 24 देशों की 53% फीसदी वयस्क आबादी समलैंगिंक शादियों को कानूनी मान्यता देने का समर्थन करती दिखी.

‘सबसे पहले मान्यता देने वाले नीदरलैंड में क्या है प्रावधान?’

सेम सेक्स मैरिज को पहले सबसे नीदरलैंड ने स्वीकृति दी थी. वहां संसद ने साल 2000 में विधेयक को 3-1 के अंतर से पारित किया था.

उसके बाद 1 अप्रैल 2001 से यह कानूनी तौर पर लागू हो गया. इस कानून के तहत समलैंगिक कपल को शादी करने, तलाक लेने और बच्चे गोद लेने का अधिकार दिया गया है.

इतना ही नहीं, शादी को दो लोगों द्वारा अनुबंधित भी किया जा सकता है. नीदरलैंड में इसे बड़े स्तर पर स्वीकार भी किया जाता है.

‘भारत में 53 फीसदी लोग समर्थन में?’

सर्वे में भारत के लोगों के समर्थन का भी दावा किया गया है. प्यू रिसर्च सेंटर के ‘स्प्रिंग 2023 ग्लोबल एटिट्यूड्स सर्वे’ में पाया गया है कि सर्वेक्षण में शामिल करीब 53% भारतीय समलैंगिक विवाह को वैध बनाने की बात को स्वीकार कर रहे हैं. भारत में ये लोग कहते हैं कि समलैंगिक जोड़ों के लिए इंडिया बेहतर जगह बन गई है.

क्या है मामला? 

दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट समेत अलग-अलग अदालतों में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग को लेकर याचिकाएं दायर हुई थीं. इन याचिकाओं में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के निर्देश जारी करने की मांग की गई थी.

पिछले साल 14 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट में पेंडिंग दो याचिकाओं को ट्रांसफर करने की मांग पर केंद्र से जवाब मांगा था.

इससे पहले 25 नवंबर को भी सुप्रीम कोर्ट दो अलग-अलग समलैंगिक जोड़ों की याचिकाओं पर भी केंद्र को नोटिस जारी की था.

इन जोड़ों ने अपनी शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर करने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की थी.

इस साल 6 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी याचिकाओं को एक कर अपने पास ट्रांसफर कर लिया था.

याचिकाओं में क्या है मांग?

  • इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को डिक्रिमिनलाइज कर दिया था. यानी भारत में अब समलैंगिक संबंध अपराध नहीं हैं. लेकिन अभी भारत में समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं मिली है. ऐसे में इन याचिकाओं में स्पेशल मैरिज एक्ट, फॉरेन मैरिज एक्ट समेत विवाह से जुड़े कई कानूनी प्रावधानों को चुनौती देते हुए समलैंगिकों को विवाह की अनुमति देने की मांग की गई है.

  • समलैंगिकों की मांग है कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार LGBTQ (लेस्बियन, गे, बायसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीर) समुदाय को उनके मौलिक अधिकार के हिस्से के रूप में दिया जाए. एक याचिका में स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 को जेंडर न्यूट्रल बनाने की मांग की गई थी, ताकि किसी व्यक्ति के साथ उसके सेक्सुअल ओरिएंटेशन की वजह से भेदभाव न किया जाए.

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