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New Delhi नई दिल्ली। (manmohan singh from economist to prime minister a journey) पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की पार्थिव देह का अंतिम संस्कार शनिवार सुबह 10 बजे राजघाट पर किया जाएगा।

मनमोहन सिंह के पार्थिव शरीर को तिरंगे में लपेटा गया

दिल्ली में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के आवास पर उनके पार्थिव शरीर को तिरंगे में लपेटा गया है. कल राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा.

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को देश नम आंखों से याद कर रहा है.

इस बीच उनसे जुड़ा एक ऐसा किस्सा बताते हैं, जो बहुत ही कम लोगों को पता होगा.

वह फोन कॉल, जिसने सिर्फ देश की तस्वीर ही नहीं बल्कि मनमोहन सिंह की जिंदगी भी बदलकर रख दी.

जून 1991 का वो दिन जब डॉ. मनमोहन सिंह नीदरलैंड में एक सम्मेलन में शामिल होने के बाद दिल्ली वापस लौटे थे.

वह अपने घर में आराम कर रहे थे. इस बीच देर रात को एक कॉल आया. यह कॉल रिसीव किया मनमोहन सिंह के दामाद विजय तन्खा ने.

फोन पर दूसरी तरफ आवाज थी पीवी नरसिम्हा राव के विश्वासपात्र पीसी एलेक्जेंडर की. एलेक्जेंडर ने विजय से उनके ससुर को जगाने की अपील की.

नरसिम्हा राव के भरोसे ने बनाया वित्त मंत्री

मनमोहन सिंह के हवाले से उनकी बेटी दमन सिंह की किताब ‘स्ट्रिक्टली पर्सनल, मनमोहन एंड गुरशरण’ में 21 जून 1991 के उस दिन का जिक्र है जब मन मोहन सिंह अपने यूजीसी ऑफिस में बैठे थे.

उनसे घर जाने और तैयार होकर शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए कहा गया.

किताब में पूर्व पीएम के हवाले से कहा गया है कि पद की शपथ लेने के लिए लाइन में  खड़ी नई टीम के सदस्य के रूप में उनको देखकर हर कोई हैरान था.

हालांकि उनका पोर्टफोलियो बाद में आवंटित किया गया था. लेकिन नरसिम्हा राव ने उनको तभी बता दिया था कि वह वित्त मंत्री बनने जा रहे हैं.

खुद कहा था ‘एक्सीडेंटल वित्तमंत्री’

ये बातें खुद मनमोहन सिंह ने बताई थीं और उन्होंने हंसते हुए ये भी कहा था कि मुझे भले एक्सीडेंटल प्रधानमंत्री कहा जाता है पर वो ‘एक्सीडेंटल वित्तमंत्री’ भी रहे हैं.

1991 के ऐतिहासिक आर्थिक सुधारों के जनक मनमोहन सिंह ये तमाम राज 2018 में अपने भाषणों पर लिखी गई किताब के लॉंच के मौके पर खोले थे. उन्होंने बताया सब कुछ एक सस्पेंस थ्रिलर की तरह था.

पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर सिंह ने इस बारे में  एक बार खुद बताया था –

“जब मेरे पास भारत के वित्तमंत्री बनने का प्रस्ताव आया तब मैं यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (यूजीसी) का चेयरमैन था. मैं पीएम नरसिंह राव जी की पहली पसंद नहीं था.

वित्तमंत्री बनने का ये प्रस्ताव पहले डॉक्टर आई जी पटेल के पास गया था. जो एक वक्त रिजर्व बैंक के गवर्नर भी रह चुके थे.

लेकिन उन्होंने मना कर दिया. इसके बाद नरसिंह राव के प्रिंसिपल सेक्रेटरी डॉक्टर एलेक्जेंडर पेशकश के साथ मेरे घर आए.”

अगले दिन पीएम नरसिंह राव ने मुझे तलाशना शुरू किया और यूजीसी के दफ्तर में मुझे पकड़ लिया और उनको मिलने बुलाया.

मुलाकात होते ही नरसिंह राव का पहला सवाल था – क्या एलेक्जेंडर ने तुमको मेरा ऑफर नहीं बताया. मैंने जवाब दिया- बताया तो था, पर मैंने उनको सीरियसली नहीं लिया.

वित्तमंत्री बनने की मनमोहन सिंह की शर्त

मनमोहन सिंह ने कहा उन्होंने प्रधानमंत्री नरसिंह राव के सामने दो टूक शर्त रखी कि देश गहरे वित्तीय संकट में है, इसलिए इलाज कड़वा होगा, कठोर फैसले लेने होंगे.

क्या आप इसके लिए तैयार हैं? इस पर राव ने कहा: ‘’मंजूर है. मैं आपको फ्री हैंड देता हूं.

लेकिन थोड़ा मुस्कुराते हुए बोले मेरी भी शर्त है ध्यान रखिए अगर सब ठीक-ठाक और अच्छा रहा, तो सारा क्रेडिट हम लेंगे. अगर फेल हुए, तो जिम्मेदार आपको ठहराएंगे.’’

खुद पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने अपनी किताब चेंजिंग इंडिया के लॉन्च के दौरान अपनी लाइफ के दो सबसे अहम प्रधानमंत्रियों श्रीमती इंदिरा गांधी और नरसिंह राव से जुड़े राज का खुलासा किया था.

उनकी किताब चेंजिंग इंडिया में 1956 से 2017 तक के उनके लेखों और भाषणों का कलेक्शन है जो पांच वॉल्यूम में दिसंबर 2018 में लॉन्च हुई थी.

डॉक्टर मनमोहन सिंह ने अपनी किताब के लॉन्च के मौके पर भारत के सामने आई चुनौतियां और अपने साथ हुए कई ऐसे रोचक किस्से बताए, जिन्होंने भारत का इतिहास बदल दिया.

मनमोहन सिंह ने रोक दिया था इंदिरा गांधी का भाषण

मनमोहन सिंह ने एक बार पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ऐन वक्त पर गलत तथ्यों वाला भाषण पढ़ने के रोक दिया था.

मनमोहन सिंह तब वित्त मंत्रालय में थे और 1980 के चुनाव में इंदिरा गांधी भारी बहुमत से चुनाव जीतने के बाद दोबारा ताकतवर प्रधानमंत्री बन चुकी थीं.

ढाई साल में ही विपक्ष की दो सरकारें गिर गई थीं. आत्मविश्वास से भरी इंदिरा गांधी ने इस मौके पर देश को संबोधित करने का फैसला किया.

उनका भाषण तैयार था, जिसका बड़ा हिस्सा राजनीतिक था और पिछली जनता पार्टी सरकारों पर गंभीर आरोपों की बौछार थी.

लेकिन देश को संबोधित करने के ऐन पहले इंदिरा गांधी को लगा भाषण पर किसी जानकार से सलाह ले ली जाए. प्रधानमंत्री इंदिरा ने मनमोहन सिंह की मदद लेने का फैसला किया.

इंदिरा गांधी ने डॉक्टर मनमोहन सिंह को भाषण दिखाते हुए कहा कि एक बार इसे देख लीजिए तथ्य वगैरह दुरुस्त हैं.

डॉक्टर मनमोहन सिंह ने पूरा भाषण भाषण पढ़ा और उनकी नजर एकदम से आर्थिक मुद्दों से जुड़े आरोपों पर टिक गई.

उन्होंने श्रीमती गांधी से कहा उन्हें राजनीतिक आरोपों से कोई लेना-देना नहीं पर आर्थिक मुद्दों पर भाषण का एक तथ्य पूरी तरह गलत है. इंदिरा ने चौंकते हुए अंदाज में पूछा क्या गलत है?

उन्होंने कहा मैडम, आपके इस इस भाषण में एक बात पूरी तरह गलत है कि जनता पार्टी सरकार के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार पूरी तरह खाली हो गए, जो कि तथ्य से उलट है.

असल स्थिति को ये है कि विदेशी मुद्रा भंडार की हालत पहले से बहुत बेहतर हुई है इसलिए इस आरोप को भाषण से हटा दीजिए, वरना बड़ी किरकिरी हो जाएगी.

इंदिरा गांधी ने फौरन इस सलाह पर अमल किया और भाषण से विदेशी मुद्रा भंडार खाली होने वाला आरोप हटा दिया.

बच्चों कभी नहीं बिठाया सरकारी गाड़ी में

मनमोहन सिंह की बेटी दमन सिंह ने अपनी किताब स्ट्रिक्टली पर्सनल: मनमोहन एंड गुरशरण में दावा किया है कि उनके पिता ने परिवार के किसा सदस्य को सरकारी गाड़ी के उपयोग की कभी भी इजाजत नहीं दी. ऐसे तमाम अनसुने किस्सों का जिक्र उन्होंने अपनी किताब में किया है.

पेंशन से बाकी जीवन गुजारना चाहते थे

मनमोहन सिंह हमेशा ब्यूरोक्रेट ही रहना चाहते थे वो पढ़ने, पढ़ाने और आर्थिक नीतियों पर सरकार को सलाह देने के अलावा कोई राजनीतिक पद नहीं लेना चाहते थे.

यहां तक कि किताब में उन्होंने बताया कि वो यही चाहते थे कि सरकारी नौकरी से रिटायरमेंट के बाद पढ़ने और पढ़ाने पर ही ध्यान देंगे.

सरकारी नौकरी में रिटायर होने के बाद जो पेंशन मिलेगी उससे बाकी लाइफ अच्छे से कट जाएगी.

एक बड़ी रोचक बात का जिक्र मनमोहन सिंह ने किया था कि पेंशन पर खतरा ना आए इसलिए उन्होंने इंदिरा गांधी से तबादला रोकने की दरख्वास्त भी की थी.

‘पेंशन के लिए प्लीज तबादला रोक दीजिए’

मनमोहन सिंह के मुताबिक इंदिरा गांधी ने वित्तमंत्रालय से जब योजना आयोग (अब नीति आयोग) भेजने का फैसला किया तो तो उन्‍होंने मना कर दिया.

पूर्व प्रधानमंत्री गांधी ने मनमोहन सिंह से इसकी वजह पूछी, तो उन्होंने कहा: “मैडम, मैं ब्यूरोक्रेट हूं. अगर योजना आयोग जाता हूं, तो मुझे सिविल सर्विस छोड़नी पड़ेगी और रिटायरमेंट की पेंशन नहीं मिलेगी.”

इंदिरा गांधी ने उस वक्त के कैबिनेट सेक्रेटरी से इसका तरीका निकालने का आदेश दिया ताकि उनकी वरिष्ठता और पेंशन पर फर्क ना पड़े.

मनमोहन सिंह वित्तमंत्री रहते हुए भी तत्कालीन विपक्ष के नेता अटल बिहारी को भी पसंद थे. मनमोहन सिंह ने खुद एक बार बताया था कि एक बार उनकी आर्थिक नीतियों की लोकसभा में विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने तीखी आलोचना की.

इस आलोचना से वो इतने दुखी हो गए कि उन्होंने नरसिंह राव से कहा वो वित्तमंत्री पद से इस्तीफा देना चाहते हैं.

तब नरसिंह राव ने अपने करीब दोस्त अटल बिहारी वाजपेयी का बताया और उनसे अनुरोध किया कि वो एक बार मनमोहन सिंह से मिल लें.

जब नवजोत सिद्धू ने मांगी थी मनमोहन सिंह से माफी

कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निधन पर उनसे माफी मांगने का अपना पुराना वीडियो साझा किया है।

उन्होंने वीडियो साझा कर लिखा, ‘एक महान प्रधानमंत्री, जो हमेशा एक पंथ के रूप में जाने जाते हैं और रहेंगे…उनकी किवदंती बढ़ती रहेगी…क्योंकि संस्थाएं कभी नहीं मरतीं, वे पीढ़ियों को प्रेरित करती रहती हैं।

जब हिंदुस्तान की सियासत में किरदार, क़ाबिलियत और ईमानदारी का इतिहास लिखा जाएगा आपका नाम पहले सफ़े पे सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा।’

आगे क्या लिखा सिद्धू ने?

सिद्धू ने आगे लिखा, ‘ना तुझसे पहले कोई ऐसा था ना तेरे बाद कोई ऐसा होगा!!’सिद्धू ने वर्ष 2018 का 6 साल पुराना वीडियो साझा किया है, जो दिल्ली में हुए कांग्रेस के 84वें महाधिवेशन का है।

इसमें सिद्धू ने खुले मंच से सिंह से माफी मांगते हुए कहा था कि उनको पहचानने में उन्हें 10 साल लग गए। उन्होंने सिंह को “असरदार सरदार” कहा था।उन्होंने कहा था, “मैं मनमोहन सिंह से झुककर माफी मांगता हूं। “

सिद्धू ने क्यों मांगी थी माफी?

वर्ष 2013 में पंजाब में भाजपा की एक रैली के दौरान सिद्धू ने तत्कालीन प्रधानमंत्री सिंह पर निशाना साधा था।

उस समय सिद्धू भाजपा में थे।सिद्धू ने कहा था डॉ सिंह रबड़ के गुड्डे जैसे एक पप्पू प्रधानमंत्री हैं।

उन्होंने कहा था कि सिंह अर्थशास्त्री नहीं बल्कि अनर्थ-शास्त्री हैं।उन्होंने कहा था कि डॉ सिंह सरदार हो सकते हैं, लेकिन असरदार नहीं हो सकते। 2018 में कांग्रेस में आने के बाद उन्होंने अपने शब्दों के लिए माफी मांगी।

‘रुपए का दूसरा डीवैल्युएशन भी एक्सीडेंटल था’

मनमोहन सिंह ने बताया कि वो वित्तमंत्री बन तो गए, लेकिन उन्होंने जब दफ्तर पहुंचकर देश के सभी आर्थिक पैरामीटर देखे तो उनके होश उड़ गए आर्थिक स्थिति अनुमान से भी बहुत ज्यादा खराब थी और ऊपर से मुश्किल ये कि नरसिंह राव की सरकार बहुमत की सरकार नहीं थी.

ऐसे में कठोर फैसले लेना बहुत जटिल काम था. खासतौर पर भारत की अर्थव्यस्थता को खोलने के लिए राजनीतिक दलों पूरी तरह तैयार नहीं थे.

यहां तक कि कांग्रेस के कई पुराने नेता बड़े पैमाने पर आर्थिक सुधारों के विरोधी थे क्योंकि उन्हें लगता था इससे चुनावों में नुकसान होगा.

मनमोहन सिंह बताते हैं लेकिन उनके लिए सबसे अच्छी बात यही थी कि प्रधानमंत्री नरसिंह राव को उनपर पूरा भरोसा था और उन्होंने फ्री हैंड दे रखा था.

लेकिन कई मौकों पर तो वो भी थोड़ा नर्वस हो गए. खासतौर पर जब उन्होंने रुपए के डीवैल्यूशन के साथ इकोनॉमी को पहली कड़वी दवा दी तो ऐसा राजनीतिक भूचाल आया कि पीएम राव भी परेशान हो गए थे.

मनमोहन सिंह ने खुलासा किया कि रुपए के डीवैल्यूएशन में भी एक एक्सीडेंट ही रहा.

हुआ यूं कि माहौल टेस्ट करने के लिए पहले दौर में रुपए का थोड़ा डीवैल्युएशन किया गया ताकि उस पर राजनीतिक और आर्थिक प्रतिक्रिया देखने के बाद आगे का फैसला लिया जा सके.

मनमोहन सिंह ने बताया कि ‘’पहले चरण में हमने रुपए के डीवैल्युएशन का मामूली डोज दिया.

लेकिन इतना भयंकर राजनीतिक हंगामा हुआ कि पीएम राव तक इतने टेंशन में आ गए कि उन्होंने मुझे बुलाकर कहा दूसरे चरण का डीवैल्युएशन तुरंत रोक दो.

मैंने फौरन ही पीएम दफ्तर से रिजर्व बैंक के उस वक्त के गवर्नर सी रंगराजन को फोन किया और पीएम का फरमान सुनाया.

लेकिन रंगराजन बोले ओह.. आपने बताने में देर कर दी, अब कोई फायदा नहीं, क्योंकि मैंने तो रुपए के दूसरे दौर का डीवैल्युएशन का ऐलान भी कर भी दिया है और इसे पीछे लेना मुमकिन नहीं क्योंकि दुनियाभर में गलत संदेश जाएगा. यानी कि दूसरे दौर का डीवैल्युएशन एक्सीडेंट से हो गया.’’ वो बोले कई अच्छे काम भी एक्सीडेंट से होते हैं.

डॉक्टर मनमोहन सिंह ने अपनी किताब के लॉन्च के मौके पर भारत के सामने आई चुनौतियां और अपने साथ हुए कई ऐसे रोचक किस्से बताए, जिन्होंने भारत का इतिहास बदल दिया.

मनमोहन सिंह दरअसल राजनीतिक व्यक्ति नहीं थे तभी तो वो कांग्रेस और विपक्ष के पीएम दोनों के पसंदीदा अधिकारी बने रहे.

उन पर जितना भरोसा इंदिरा गांधी करती थीं उतना ही भरोसा जनता पार्टी के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई या चंद्रशेखर किया करते थे.

मनमोहन सिंह की इमेज यही थी कि वो अपनी आंखों के सामने से गलत आर्थिक तथ्य नहीं निकलने देंगे.

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