ज्वाला देवी मंदिर में 9 अखंड ज्योतियां सदियों से लगातार जल रही हैं।

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Jalandhar जालंधर। (jwala devi shaktipeeth of himachal pradesh) हिमाचल के कांगड़ा के देवी मंदिर में सदियों से लगातार नौ ज्योत जल रही हैं।

इन ज्योतियों का सोर्स आज तक पता नहीं चला है। अकबर ने भी यहां की अखंड ज्योति को बुझाने की कोशिश की, लेकिन नहीं बुझा पाया तो उसके मन में श्रद्धा जागी।

अकबर ने देवी को सोने का छत्र चढ़ाया, लेकिन वो किसी और धातु में बदल गया। छत्र किस धातु में बदला, ये आज तक पता नहीं चल पाया।

हम बात कर रहे हैं ज्वाला देवी शक्तिपीठ की..

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, यहां देवी सती की जीभ गिरी थी। बाद में कांगड़ा की पहाड़ी पर ज्योति रूप में देवी प्रकट हुईं। सबसे पहले मां के दर्शन यहां पशु चरा रहे ग्वालों ने किए थे। तब से आज तक ये ज्योति जल रही है।

यहां नवरात्रि की शुरुआत झंडा रस्म और कन्या पूजन से हुई। नवरात्रि के छठे, सातवें और आठवें दिन मंदिर 24 घंटे खुला रहेगा। नौवें दिन हवन और कन्या पूजन होगा।

मंदिर में जल रही नौ ज्योतियों में तीसरी ज्योति मां चंडी की है।

नौ दिनों तक यहां दिन में पांच बार आरती होती हैं और इनमें अलग-अलग भोग लगते हैं। सुबह की पहली बड़ी आरती में मालपुए, दूसरी में पीले चावल और दोपहर में दाल-चावल चढ़ाते हैं। रात में होने वाली बड़ी आरती में देवी को मिश्री और दूध का भोग लगता है।

यहां 100 साल पहले तक थी पंचबलि की परंपरा

करीब 100 साल पहले तक ज्वाला देवी में पंचबलि की परंपरा थी। इनमें भेड़, भैंसे, बकरे, मछली और कबूतर की बलि दी जाती थी, लेकिन बाद में ये प्रथा बंद कर दी गई। अब इनकी जगह पीले चावल और उड़द की वड़ी का भोग लगाया जाता है।

ऊपर दिख रही ज्योत ही सबसे पहले प्रकट हुई थी। इसी ज्योत को ज्वाला देवी कहा जाता है।

अखंड ज्योत का सोर्स जानने के लिए कई बार हुई हैं रिसर्च

सदियों से जल रही अखंड ज्योत कौन सी गैस से जल रही हैं और इसका सोर्स क्या है, ये जानने के लिए जापान समेत कई देशों से मशीनें लाई गईं, लेकिन आज तक इसका सोर्स पता नहीं चला है। रिसर्च फेल होने के बाद वैज्ञानिक अपनी मशीनें यहीं छोड़ गए, जो आज भी यहां के जंगलों में पड़ी हैं।

1835 में राजा संसार चंद और महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया था मंदिर निर्माण

सतयुग में माता ज्वाला जी के पहले मंदिर का निर्माण राजा भूमिचंद ने करवाया था। इसके बाद 1835 में कांगड़ा के तत्कालीन राजा संसार चंद और महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया था।

ज्योतियों को छूने पर नहीं जलता है हाथ

मंदिर में जल रही ज्योतियों की एक खास बात ये है कि इन ज्योतियों को छूने पर हमारा हाथ नहीं जलता है। यहां आने वाले मां की ज्योतियों को छूते हैं और यहां माथा टेकते हैं।

अकबर के चढ़ाए हुए छत्र की धातु जानने के लिए भी हुई हैं रिसर्च

अकबर ने अखंड ज्वाला को जांचने की कोशिश की और उसे बुझाने के लिए नहर का पानी ज्योत की ओर छोड़ दिया। इसके बाद भी अखंड ज्योत जलती रही और पानी पर तैरने लगीं।

ये चमत्कार देख अकबर के मन में देवी के लिए श्रद्धा जागी। श्रद्धा जागी तो अकबर नंगे पैर देवी मंदिर आया और सोने का एक छत्र चढ़ाया।

कहा जाता है कि अकबर ने सोने का छत्र चढ़ाया तो उसे इस बात का घमंड हो गया था, इसलिए देवी ने वो छत्र स्वीकार ही नहीं किया। चमत्कार से ये छत्र किसी और ही धातु में बदल गया।

तब से अब तक छत्र की धातु जानने के लिए भी कई रिसर्च हुईं, लेकिन ये तय नहीं हो पाया कि छत्र में लगा सोना ही है या कोई और धातु।

आज भी ज्वालाजी मंदिर में वो गोरख टिब्बी मौजूद हैं, जहां सुलगता हुआ धूप दिखाने पर मां पानी पर दर्शन देती हैं।

यहां देवी की 9 अखंड ज्योतियां

ज्वाला देवी मंदिर के गर्भगृह में 9 अखंड ज्योतियां जल रही हैं, जिनके अलग-अलग नाम हैं।

पहली ज्वाला महाकाली की है। दूसरी ज्योति महामाया की है, जिन्हें अन्नपूर्णा भी कहते हैं। तीसरी ज्योति मां चंडी की, चौथी देवी हिंगलाज भवानी की और पांचवी ज्योति मां विंध्यवासिनी की है।

छठी ज्योति धन-धान्य की देवी महालक्ष्मी की है। सातवीं विद्या की देवी सरस्वती की है। आठवीं ज्योत देवी अंबिका की और नौंवी ज्योति मनोकामना पूरी करने वाली मां अंजनी की है।

पांडव भी आए थे माता के दरबार

कांगड़ा में माता का एक भजन “पंजा पंजा पांडवां मैया तेरा भवन बनाया, अर्जुन चंवर झुलाया मेरी मां” बहुत प्रसिद्ध है।

माना जाता है कि महाभारत के समय में अज्ञातवास के दौरान पांडव जब माता ज्वाला जी के दरबार में आए थे और उन्होंने माता के भवन का निर्माण किया था। इसके बाद राजा भूमिचन्द्र ने मंदिर का भवन बनवाया था।

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