Prabhat Times
जालंधर। डीएवी यूनिवर्सिटी (DAV University) जालंधर के कृषि विज्ञान विभाग द्वारा सतत कृषि: चुनौतियां और अवसर विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन में स्थायी कृषि के लिए फसल उत्पादन, फसल संरक्षण और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन आदि विषय शामिल किए गए। सम्मेलन का उद्घाटन गायत्री मंत्र के उच्चारण से किया गया।
डीएवी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ जसबीर ऋषि ने आयोजकों और प्रतिभागियों को डीएवी कॉलेज प्रबंध समिति के अध्यक्ष और डीएवी विश्वविद्यालय के कुलपति पद्मश्री डॉ पुनम सूरी का संदेश व आशीर्वाद दिया। उन्होंने उनके निरंतर मार्गदर्शन और समर्थन के लिए आभार व्यक्त किया। उन्होंने कृषि विज्ञान विभाग मुखी व उनकी टीम को सम्मेलन आयोजित करने के लिए बधाई दी।
डॉ. के एन कौल, रजिस्ट्रार, डीएवी विश्वविद्यालय ने स्थायी कृषि में चुनौतियों को हल करने के लिए सम्मेलन के विचार-विमर्श के माध्यम से प्राप्त ज्ञान का उपयोग करने का सुझाव दिया। डीन अकादमिक, डीएवी विश्वविद्यालय, डॉ आर के सेठ ने प्रतिभागियों को सम्मेलन के बारे में संक्षिप्त परिचय दिया। उन्होंने दुनिया की बढ़ती आबादी को खिलाने के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर लगातार बढ़ते दबाव पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि स्थायी कृषि पद्धतियां और भी महत्वपूर्ण हो जाती हैं, जहां कृषि सबसे बड़ा नियोक्ता है।
इससे पहले, कृषि विज्ञान विभाग की मुखी डॉ. अंजू पठानिया ने स्वागत भाषण दिया। सम्मेलन के मुख्य वक्ता डॉ. एस के शर्मा, पूर्व कुलपति, सीएसके एचपीकेवी, पालमपुर, पूर्व निदेशक एनबीपीजीआर, नई दिल्ली ने सफल कृषि में प्रमुख मुद्दों पर चर्चा की और इस बात पर प्रकाश डाला कि यद्यपि आजादी के बाद से खाद्यान्न उत्पादन में छह गुना वृद्धि हुई है और हरी, सफेद, नीली और पीली क्रांतियां देखी हैं, लेकिन हमारे प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन की कीमत पर यह सब कुछ पाया है। उन्होंने सफलकृषि के लिए चार स्तंभों के रूप में जैविक, भौतिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिरता का सुझाव दिया।
डॉ. गिरीश चंदर, वरिष्ठ वैज्ञानिक, अंतर्राष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान पाटनचेरु, हैदराबाद ने भारत में मिट्टी के क्षरण का अवलोकन दिया और प्राकृतिक पर बात की। मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन के विशेष संदर्भ में संसाधन प्रबंधन। उन्होंने संसाधनों के कुशल उपयोग के लिए अत्याधुनिक विश्लेषणात्मक सुविधाओं की आवश्यकता पर जोर दिया।
डॉ. सैमसन ओकोंगो माबवोगा, स्कूल ऑफ टूरिज्म एंड नेचुरल रिसोर्सेज मैनेजमेंट, मासाई मारा यूनिवर्सिटी, नारोक, केन्या ने प्रतिनिधियों को कृषि के योगदान के बारे में अवगत कराया जो केन्या के कुल सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 35 पतिषत है। उन्होंने केन्या में कृषि उत्पादकता की बाधाओं पर प्रकाश डाला और केन्या के किसानों द्वारा रिमोट सेंसिंग, सटीक कृषि और उन्हें अपनाने जैसी डिजिटल तकनीकों का उपयोग करके कृषि उत्पादकता बढ़ाने के अवसरों का पता लगाया।
डॉ. डेनियल नेहॉफ, जैविक खेती विभाग, फसल विज्ञान और संसाधन संरक्षण संस्थान, बॉन विश्वविद्यालय, जर्मनी ने बताया कि जर्मनी में दस प्रतिशत कृषि भूमि का प्रबंधन राजनीतिक समर्थन और उपभोक्ता मांग के कारण बढ़ती प्रवृत्ति के साथ व्यवस्थित रूप से किया जाता है। जैविक उत्पादों के सेवन का मुख्य कारण पर्यावरण संरक्षण और व्यक्तिगत स्वास्थ्य है।
उन्होंने कहा कि जैविक कृषि उत्पादों में उच्च प्रक्रिया गुणवत्ता होती है और उन्होंने जैविक कृषि प्रणालियों में कम उत्पादकता के मुद्दों को संबोधित करने के लिए पोषक चक्रों को बंद करने और बीएनएफ बढ़ाने जैसे कुछ दृष्टिकोण सुझाए।सम्मेलन में स्थानीय व विदेशों के शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों और शोधार्थियों सहित दो सौ से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लेते स्थायी कृषि पर विचार-विमर्श किया।
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