Prabhat Times
चंडीगढ़। (Because of this, Captain Amarinder Singh could not join BJP) आखिर पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस को अलविदा कहने का तो ऐलान कर दिया, लेकिन साथ ये भी कहा कि वे भाजपा ज्वाइन नहीं करेंगे। आखिर क्यों? इस बात का एक टैक्नीकल रीज़न सामने आया है।
79 साल के अनुभवी राजनेता कैप्टन अमरिंदर सिंह की उम्र उनके भारतीय जनता पार्टी में न जाने की एक बड़ी वजह बन गई, क्योंकि भाजपा ने सक्रिय राजनीति के लिए 75 साल की उम्र का पैमाना तय कर रखा है। 29 सितंबर को गृह मंत्री अमित शाह से 45 मिनट चली बातचीत में यह तय किया गया कि वो बाहर से ही बीजेपी के लिए काम करेंगे। उनके एजेंडे में सबसे बड़े मुद्दे पंजाब कांग्रेस और किसान आंदोलन हैं। कैप्टन 28 सितंबर को चंडीगढ़ से यह बोलकर आए थे कि वो दिल्ली का घर खाली करने जा रहे हैं। इसके बाद अमरिंदर 29 सितंबर की शाम 6 बजे गृह मंत्री अमित शाह के घर पहुंचे। यहां 45 मिनट रुकने के बाद अमरिंदर वापस अपने घर गए और अगले दिन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से मुलाकात की।
भाजपा को केंद्र नहीं बल्कि पंजाब के लिए एक कद्दावर चेहरे की तलाश है। ऐसा नेता जो पंजाब में भाजपा के लिए सियासी जमीन तैयार करने के साथ ही राज्य से उठे किसान आंदोलन को भी थाम सके। कैप्टन पंजाब की राजनीति को बेहतर समझते हैं। वहां उनका अपना वोट बैंक है। लिहाजा कैप्टन अगर अपना एक नया दल या गैर राजनीतिक संगठन बनाते हैं तो एक वोट बैंक को अपनी तरफ कर पाएंगे। दूसरी तरफ भाजपा में रहते हुए उनके वोट बैंक पर केंद्र में सत्तासीन पार्टी से किसानों की नाराजगी का सीधा असर पड़ सकता था। लिहाजा शाह ने उन्हें भाजपा का विश्वासपात्र बनाकर इन दोनों कामों के लिए प्रेरित किया। कैप्टन ने अमित शाह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से मुलाकात के बाद जो रुख अपनाया है उससे साफ है कि वे काम की शुरुआत कर भी चुके हैं।
चुनाव में सिद्धू और कांग्रेस पर जमकर मढ़ेंगे आरोप
कैप्टन ने साफ कह दिया है कि वे नवजोत सिंह सिद्धू को किसी भी हालत में पंजाब की किसी सीट से जीतने नहीं देंगे। देश की सुरक्षा को लेकर कैप्टन ने सिद्धू पर गंभीर आरोप भी लगाए हैं। अमित शाह से मुलाकात के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से भी मुलाकात की है। मुलाकात के बाद कैप्टन ने साफ किया कि सुरक्षा के मसले पर बातचीत हुई है। लिहाजा कैप्टन की यह मुलाकात उनके आगे के सियासी सफर के लिए फायदेमंद साबित होगी। एक तो वे सिद्धू को पंजाब की राजनीति से अलग करने में कामयाब होंगे। दूसरे वे सिद्धू पर मेहरबान रही कांग्रेस पर भी आरोप मढ़ेंगे।
वे यह भी कह सकते हैं कि कांग्रेस आलाकमान को सिद्धू के बारे में बार-बार चेताने की वजह से उनके और शीर्ष नेतृत्व के बीच खाई चौड़ी होती गई। इसका फायदा उन्हें चुनाव में मिलेगा। CSDS के निदेशक और चुनाव विश्लेषक संजय कुमार के मुताबिक कैप्टन अमरिंदर कांग्रेस के 4% से 5% वोट डैमेज कर सकते हैं। उनकी हैसियत तकरीबन 6 फीसदी वोट लाने की है। ऐसे में अगर यह वोट भाजपा के वोट प्रतिशत के साथ जुड़ा तो आंकड़ा 10 फीसदी होगा। 2017 के चुनाव में भाजपा वहां 6 फीसदी का आंकड़ा भी नहीं छू पाई थी।
अपना संगठन या सियासी दल बनाकर किसानों की करेंगे मनुहार
कैप्टन की भाजपा से नजदीकी पर किसान संगठनों ने जिस तरह सख्त रुख अपनाया, उससे एक बात साफ है किसान भाजपा से बेहद नाराज हैं। अगर भाजपा का कोई भी नेता उनके पास प्रस्ताव लेकर जाएगा तो पिछली खटास का असर बातचीत में रहेगा। किसान नेता राकेश टिकैत ने साफ कर दिया है कि हमें तो बस अपनी मांगों से मतलब है, जो भी कृषि कानूनों को खत्म करने और एमएसपी की गारंटी का प्रस्ताव लाएगा, हम उससे बात करेंगे।
साफ है कि भाजपा का कोई भी नेता उनके पास प्रस्ताव लेकर जाएगा तो पुराने अनुभवों के चलते किसान ज्यादा सख्ती से पेश आएंगे, लेकिन अगर कोई स्वतंत्र रूप से बिलों में कुछ जोड़-घटाव के प्रस्ताव पर बात करेगा तो शायद बात आगे बढ़ जाए। पंजाब में किसान ताकतवर हैं। वहां मंडियां सियासत का केंद्र हैं। लिहाजा कैप्टन भाजपा की छत्रछाया तले वह नहीं कर सकते जो अलग रहकर कर सकते हैं। हालांकि किसान नेताओं का जो रवैया है वह साफ बताता है कि कैप्टन अमरिंदर को वह अपना हितैषी नहीं मानते। लिहाजा किसानों को वे कितना समझा पाएंगे, यह कहना अभी मुश्किल है।
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