नई दिल्ली। छह दिसंबर, 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाए जाने के आपराधिक मामले में 28 साल बाद आज अदालत का बड़ा फैसला आ गया है।
हाईकोर्ट के पुराने परिसर में स्थित सीबीआई की विशेष अदालत (अयोध्या प्रकरण) में फैसला सुनाया गया।
कोर्ट ने आडवाणी, जोशी, उमा, कल्याण, नृत्यगोपाल दास सहित सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया है। जबकि केस में नामजद अन्य 17 लोगों की मृत्यु हो चुकी है।
जज एसके यादव ने फैसला सुनाते हुए कहा कि बाबरी में ढांचा गिराने की घटना पूर्व नियोजित नहीं थी।
जज एस के यादव ने कहा कि बाबरी विध्वंस केस पूर्व नियोजित नहीं थी। उन्होंने कहा कि सिर्फ फोटो दिखाना साक्ष्य नहीं हो सकता है। अभियोजन पक्ष की तरफ से दलीले कसौटी पर खरी नहीं उतरती हैं।
जज ने कहा कि फोटो दिखाने से कोई आरोपी नहीं हो जाता है। जज ने यह भी कहा कि सीबीआई की तरफ से जांच को जिन बिंदुओं पर केंद्रित किया गया वो अपने आप में दोषपूर्ण था।
इस मामले में 49 लोगों को अभियुक्त बनाया गया है। इसमें से 17 की मौत हो चुकी है। सीबीआई व अभियुक्तों के वकीलों ने करीब आठ सौ पन्ने की लिखित बहस दाखिल की है।
इससे पहले सीबीआई ने 351 गवाह व करीब 600 से अधिक दस्तावेजी साक्ष्य पेश किए थे।
लिहाजा इसके मद्देनजर अदालत का फैसला भी करीब दो हजार पन्ने का है।
30 सितंबर, 2019 को सुरेंद्र कुमार यादव जिला जज, लखनऊ के पद से सेवानिवृत्त हुए थे लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें फैसला सुनाने तक सेवा विस्तार दिया था।
विशेष जज सुरेंद्र कुमार यादव के कार्यकाल का अंतिम फैसला 30 सितंबर को होगा।
सीबीआई के वकील ललित सिंह के मुताबिक कि यह उनके न्यायिक जीवन में किसी मुकदमे का सबसे लंबा विचारण है। वह इस मामले में वर्ष 2015 से सुनवाई कर रहे हैं।
उच्च अदालत में करेंगे अपील
मुस्लिम पक्ष की तरफ से जफरयाब जीलानी ने कहा कि ये फैसला कानून और हाईकोर्ट दोनों के खिलाफ है। विध्वंस मामले में जो मुस्लिम पक्ष के लोग रहे हैं उनकी तरफ से हाईकोर्ट में अपील की जाएगी।