Prabhat Times
जम्मू। (amarnath yatra 2023 jammu kashmir schedule) बाबा बर्फानी भक्तों के लिए गुड न्यूज़ है। इस साल बाबा अमरनाथ यात्रा 1 जुलाई से शुरू होगी और 62 दिन तक चलेगी।
जम्मू कश्मीर सरकार द्वारा भक्तों, श्रद्धालुओं को सुविधाएं और सुरक्षा के लिए खास और पुख्ती इंतजाम किए गए हैं।
जानकारी के मुताबिक अमरनाथ यात्रा इस साल 1 जुलाई से शुरू होगी। सरकार ने शुक्रवार को शेड्यूल जारी किया। पहला जत्था 30 जून को जम्मू से रवाना किया जाएगा।
यात्रा इस बार 31 अगस्त तक चलेगी। 62 दिनों की यात्रा को लेकर सुरक्षा व्यवस्था भी सरकार मजबूत करने में जुट चुकी है।
पहली बार यह यात्रा 62 दिन की होगी। पिछले साल यह 43 दिन की थी। 17 अप्रैल से ऑफलाइन और ऑनलाइन मोड के माध्यम से रजिस्ट्रेशन शुरू होगा।
जम्मू कश्मीर के एलजी मनोज सिन्हा ने कहा है कि यात्रा को सुगम और आसान बनाने के लिए सरकार सभी प्रकार के इंतजाम कर रही है। प्रदेश में आने वाले सभी श्रद्धालुओं को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं समेत अन्य सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाएंगी।
तीर्थयात्रा शुरू होने से पहले दूरसंचार सेवाओं को और बेहतर तरीके से संचालित किया जाएगा।
इन खाद्य सामग्री पर रह सकती पाबंदी
पनीर, हैवी पुलाव, तले चावल, पूरी, भटूरा, पिज्जा, बर्गर, भरवां परांठा, डोसा, भरवां रोटी, मक्खन के साथ ब्रेड, क्रीम आधारित खाद्य पदार्थ, अचार, तला पापड़, चटनी, नूडल्स, कोल्ड ड्रिंक, हलवा, मिठाइयां, खोये की कुल्फी, चिप्स, मट्ठी, नमकीन, पकौड़े, समोसे, फ्राइड ड्राई फ्रूट व डीप फ्रीज पर पाबंदी रह सकती है।
इसके अलावा मांसाहारी भोजन, तंबाकू, गुटखा व पान मसाला आदि पर पिछले वर्ष 2022 की तरह ही इस बार भी सख्ती रहने की उम्मीद है। फिलहाल अभी लंगर कमेटियों भी इस बार भक्तों के लिए परोसे जाने वाले पकवानों को लेकर विचार चर्चा करने की तैयारी में है।
क्या है अमरनाथ धाम और उसका महत्व?
अमरनाथ धाम जम्मू-कश्मीर में हिमालय की गोद में स्थित एक पवित्र गुफा है, जो हिंदुओं का सबसे पवित्र स्थल है।
माना जाता है कि अमरनाथ स्थित पवित्र गुफा में भगवान शिव एक बर्फ-लिंगम यानी बर्फ के शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। बर्फ से शिवलिंग बनने की वजह से इसे ‘बाबा बर्फानी’ भी कहते हैं।
पवित्र गुफा ग्लेशियरों, बर्फीले पहाड़ों से घिरी हुई है। गर्मियों के कुछ दिनों को छोड़कर यह गुफा साल के अधिकांश समय बर्फ से ढकी रहती है। गर्मियों के उन्हीं दिनों में यह दर्शन के लिए खुली रहती है।
खास बात ये है कि इस गुफा में हर वर्ष बर्फ का शिवलिंग प्राकृतिक रूप से बनता है। बर्फ का शिवलिंग, गुफा की छत में एक दरार से पानी की बूंदों के टपकने से बनता है।
बेहद ठंड की वजह से पानी जम जाता है और बर्फ के शिवलिंग का आकार ले लेता है। यह दुनिया का एकमात्र शिवलिंग है, जो चंद्रमा की रोशनी के आधार पर बढ़ता और घटता है।
यह शिवलिंग श्रावण शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को पूरा होता है और उसके बाद आने वाली अमावस्या तक आकार में काफी घट जाता है। ऐसा हर साल होता है।
इसी बर्फ के शिवलिंग के दर्शन के लिए हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु अमरनाथ की पवित्र गुफा की यात्रा करते हैं।
बर्फ के शिवलिंग के बाईं और दो छोटे बर्फ के शिवलिंग बनते हैं, उन्हें मां पार्वती और भगवान गणेश का प्रतीक माना जाता है।
अमरनाथ गुफा का हिंदुओ में महत्त्व
अमरनाथ यात्रा के दौरान बाबा बर्फानी के दर्शन का महत्व सिर्फ इसलिए नहीं है कि यहां हिम शिवलिंग हैं। बल्कि यहां भगवान शिव स्वयं विराजमान माने जाते हैं।
बाबा अमरनाथ के दर्शन काशी से 10 गुना, प्रयागराज से 100 गुना और नैमिषारण्य से हजार गुना पुण्य देने वाला तीर्थस्थल है।
ऐसी मान्यता है कि अमरनाथ गुफा में बाबा बर्फानी के दर्शन करने से 23 तीर्थों के पुण्य का लाभ मिल जाता है।
जम्मू-कश्मीर के गांदरबल जिले में अमरनाथ
अमरनाथ गुफा जम्मू-कश्मीर के गांदरबल जिले में 17 हजार फीट से ज्यादा ऊंचाई वाले अमरनाथ पर्वत पर स्थित है। अमरनाथ गुफा श्रीनगर से 141 किलोमीटर दूर दक्षिण कश्मीर में है।
ये पहलगाम से 46-48 किलोमीटर और बालटाल से 14-16 किलोमीटर दूर है। यहां केवल पैदल, घोड़ों या हेलिकॉप्टर द्वारा ही पहुंचा जा सकता है।
तीर्थयात्री पहलगाम से 46-48 किलोमीटर या बालटाल से 14-16 किलोमीटर की दूरी की खड़ी, घुमावदार पहाड़ी रास्ते से गुजरते हुए यहां पहुंचते हैं।
क्या है अमरनाथ यात्रा का पुराना और नया रास्ता?
अमरनाथ यात्रा का मार्ग समय के साथ बदलता रहा है। इस इलाके में सड़कों के निर्माण के साथ ही यात्रा मार्ग में भी बदलाव हुआ है। अब अमरनाथ की यात्रा के लिए दो रास्ते हैं।
एक रास्ता पहलगाम से शुरू होता है, जो करीब 46-48 किलोमीटर लंबा है। इस रास्ते से यात्रा करने में 5 दिन का समय लगता है।
वहीं दूसरा रास्ता बालटाल से शुरू होता है, जहां से गुफा की दूरी 14-16 किलोमीटर है, लेकिन खड़ी चढ़ाई की वजह से इससे जा पाना सबके लिए संभव नहीं होता, इस रास्ते से यात्रा में 1-2 दिन का समय लगता है।
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