Prabhat Times
New Delhi नई दिल्ली। (supreme court verdict in note for vote case) सुप्रीम कोर्ट ने वोट के बदले नोट मामले में एक बड़ा फैसला सुनाया है.
घूस लेकर सदन में वोट या भाषण देने वाले सांसदों और विधायकों पर मुकदमा चलाया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने 1998 के निर्णय को पलटते हुए यह व्यवस्था दी. सीजेआई ने कहा, ‘नरसिम्हा राव फैसले की व्याख्या अनुच्छेद 105/194 के उलट है.’
उन्होंने कहा, ‘हमारा मानना है कि रिश्वतखोरी संसदीय विशेषाधिकारों द्वारा संरक्षित नहीं है.’
सीजेआई ने कहा कि ‘सांसदों-विधायकों के भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी से भारतीय संसदीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली नष्ट होती है.’
पांच जजों की बेंच ने 1998 में कहा था कि MPs और MLAs को इस संबंध में ‘इम्यूनिटी’ हासिल है.
ढाई दशक बाद, सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की संविधान बेंच ने 1998 वाले फैसले की समीक्षा की है.
सोमवार को, चीफ जस्टिस (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में बैठी संविधान बेंच ने अपना फैसला सुनाया.
पीठ ने पिछले साल अक्टूबर में फैसला सुरक्षित रख लिया था. भारत सरकार की ओर से, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि घूसखोरी कभी भी इम्यूनिटी का विषय नहीं हो सकती.
सरकार का कहना था कि संसदीय विशेषाधिकार का मतलब यह नहीं है कि सांसद-विधायक कानून से ऊपर हो जाएं.
सात जजों की संविधान पीठ ने जेएमएम घूसखोरी मामले में पांच जजों की पीठ के फैसले पर पुनर्विचार किया.
1998 के फैसले में SC ने ‘सांसदों और विधायकों को विधायिका में भाषण देने या वोट देने के लिए रिश्वत लेने के लिए अभियोजन से छूट’ दी थी.
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला देश में बन रहे चुनावी माहौल के बीच आ रहा है. कुछ ही दिन के भीतर, निर्वाचन आयोग की ओर से लोकसभा चुनाव 2024 का कार्यक्रम घोषित किया जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट के सामने केंद्र की दलील
केंद्र सरकार की ओर से SC में कहा गया कि रिश्वत लेने वाले सांसदों/विधायकों को इम्यूनिटी नहीं मिलनी चाहिए.
पिछले साल मामले को सात जजों की बेंच के पास भेजते हुए CJI चंद्रचूड़ ने कहा था, ‘एकमात्र सवाल यह है कि क्या हमें भविष्य में किसी समय ऐसी स्थिति पैदा होने का इंतजार करना चाहिए या कोई कानून बनाना चाहिए.’
मामले में एमिकस क्यूरी की भूमिका निभा रहे सीनियर एडवोकेट पीएस पटवालिया ने भी कहा था कि कोई सांसद/विधायक सदन में मतदान करने या भाषण देने के लिए रिश्वत लेने पर अभियोजन से छूट का दावा नहीं कर सकता.
क्या है 1998 वाला फैसला?
सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने 1998 में पीवी नरसिम्हा राव बनाम सीबीआई मामले में फैसला सुनाया था.
बहुमत से दिए गए फैसले में SC ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 105(2) और अनुच्छेद 194(2) के तहत, सांसदों को सदन के अंदर दिए गए किसी भी भाषण और दिए गए वोट के लिए आपराधिक मुकदमा चलाने से छूट मिली है.
JMM रिश्वत कांड क्या है?
PV नरसिम्हा राव बनाम CBI केस 1993 के JMM घूसकांड से उपजा.
झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के शिबू सोरेन और कुछ अन्य सांसदों पर घूस लेकर अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोट देने का आरोप लगा.
SC ने 105(2) के तहत इम्यूनिटी का हवाला देते हुए मुकदमा खारिज कर दिया.
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