नई दिल्ली। दुनिया में सैंकड़ों टीमें कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने में जुटी हुईं हैं लेकिन रूस, ब्रिटेन, अमेरिका और चीन की एक-एक वैक्सीन इस रेस में सबसे आगे बताई जा रहीं हैं। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) का मानना है कि अगले साल तक वैक्सीन मिल पाएगी और इसे आम लोगों तक पहुंचने में अभी और वक़्त लगेगा।
हालांकि रूस ने सभी को चौंकाते हुए ऐलान कर दिया है कि वह देश में अक्टूबर से ही मास वैक्सीनेशन का कार्यक्रम शुरू करने वाला है। इसके तहत सबसे पहले डॉक्टर्स और टीचर्स को वैक्सीन दी जाएगी, इसके बाद इमरजेंसी सर्विसेज से जुड़े लोगों का नंबर आएगा।
रूस के स्वास्थ्य मंत्री मिखाइल मुराशको ने एक प्रेस कांफ्रेंस में अक्टूबर से कोरोना वैक्सीन के मास वैक्सीनेशन के लिए उपलब्ध हो जाने ऐलान कर दिया। मिखाइल ने बताया कि गामालेया इंस्टीट्यूट ने कोरोना वैक्सीन पर सभी क्लिनिकल ट्रायल पूरे कर लिए हैं और नतीजे काफी अच्छे हैं।
फिलहाल वैक्सीन रजिस्ट्रेशन और डिस्ट्रीब्यूशन की प्रक्रिया में है। उन्होंने कहा कि हम अक्टूबर से मास वैक्सीनेशन शुरू कर देंगे। सबसे पहले डॉक्टर्स और टीचर्स के लिए वैक्सीन उपलब्ध कराई जाएगी। मिखाइल के मुताबिक रूस की इस वैक्सीन को अगस्त के अंत तक मंजूरी मिल जाएगी।
कई लोगों ने जताई है चिंताकई देशों के वैज्ञानिकों ने रूस की इस जल्दबाजी के प्रति चिंता भी जाहिर की है। उनका मानना है कि दुनिया में रूस को सबसे बेहतर और मजबूत देश स्थापित करने के चक्कर में ऐसा लग रहा है कि वैक्सीन की जांच काफी जल्दबाजी में पूरी कर दी गई है।
अमेरिकी कोरोना एक्सपर्ट एंथनी फॉसी ने कहा कि अमेरिका रूस या चीन में बनी वैक्सीन नहीं इस्तेमाल कर पाएगा क्योंकि हमारे यहां के नियम-कानून और खासकर क्लिनिकल ट्रायल से जुड़े कायदे उन दोनों ही देशों से काफी सख्त और अलग हैं। शायद ये वैक्सीन हमारे सिस्टम में पास न हो पाएं।
उन्होंने कहा कि मुझे उम्मीद है कि चीन-रूस इस वायरस की गंभीरता को समझ रहे होंगे और क्लिनिकल ट्रायल जल्दबाजी में नहीं पूरे किये गए होंगे। बता दें कि इससे पहले अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने रूसी हैकर्स पर कोरोना वैक्सीन से जुड़ा डेटा चुराने का आरोप लगाया था।