Prabhat Times
नई दिल्ली। (AEFI Report) कोरोना वैक्सीनेशन (Covid Vaccine) के बाद गंभीर साइड इफेक्ट्स (Serious Side Effects) की जांच कर रहे एक्सपर्ट्स ने क्लॉटिंग की आशंका को बेहद कम बताया है. दरअसल कोरोना वैक्सीनेशन के साइड इफेक्ट्स की जांच के लिए AEFI पैनल (एडवर्स इवेंट्स फॉलोइंग इम्युनाइजेशन) बनाया गया था.
इस पैनल ने 498 गंभीर मामलों की जांच की और पाया कि सिर्फ 26 में रेयर ब्लड क्लॉटिंग की समस्या आई है. पैनल के मुताबिक जिन 26 मामलों में ब्लड क्लॉटिंग पाया गया है, उन सभी मरीज़ों ने कोविशील्ड वैक्सीन लगवाई थी। पैनल ने सोमवार को स्वास्थ्य मंत्रालय को इसकी जानकारी दी है.
नेशनल AEFI (Adverse Events Following Immunization) द्वारा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को सौंपी एक रिपोर्ट के अनुसार, CO-WIN प्लेटफॉर्म के माध्यम से पता चलता है कि अब तक 23,000 से अधिक लोगों में वैक्सीन के प्रतिकूल प्रभाव दिख चुके हैं। ये मामले देश के 753 जिलों में से 684 जिलों में दिखे। जिनमें से 700 मामले सीरियस और सीवियर हैं।
इसके बाद जब AEFI कमेटी ने 498 सीरियस मामलों की जांच की तो उसमें 26 मामले ब्लड क्लॉटिंग के मिले। कहा गया है कि ये रिस्क प्रति मिलियन पर 0.61% है। AEFI द्वारा ब्लीडिंग और ब्लड क्लॉटिंग के मामले सिर्फ कोविशील्ड वैक्सीन लेने वालों में दिखने की बात कही गई है।
पैनल ने यह भी कहा है कि भारत बायोटेक और आईसीएमआर द्वारा विकसित की गई वैक्सीन कोवैक्सीन में रेयर ब्लड क्लॉटिंग जैसा कोई भी मामला नहीं सामने आया है.
स्वास्थ्य मंत्रालय ने जारी की एडवाइजरी
स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोविशील्ड वैक्सीन लेने वालों के लिए एडवाइजरी जारी कर दी है जिसमें कहा गया है वैक्सीन लगाने के 20 दिनों तक अगर कोई शारीरिक समस्या होती है तो टीका केंद्र पर तुरंत जाएं।
साथ ही निम्न लक्षणों के दिखने पर भी टीका केंद्र पर संपर्क करें- सांस लेने में दिक्कत, छाती में दर्द, हाथ पैरों में दर्द होना या हाथ पैरों को दबाते वक्त दर्द होना/सूजन आना, वैक्सीन लगने वाली जगह पर लाल होना, लगातार उल्टी आना, पेट में दर्द होना, आंखों में दर्द या डबल विजन होना, सिर में दर्द होना, शरीर के किसी भी हिस्से में लगातार दर्द होना, या कोई और लक्षण जो आपको गंभीर लग रहा है।
क्या है ये रेयर ब्लड क्लॉटिंग
सेलेबल वेनस साइनस थ्रोबोसिस (CVST) नाम की इस रेयर ब्लड क्लॉटिंग को पहली बार जर्मनी के मेडिकल रेगुलेटर Paul Ehrlich Institute ने पकड़ा. मध्य मार्च में इंस्टिट्यूट ने बताया कि ब्लड क्लॉटिंग के मामले ज्यादातर युवा और मध्य उम्र की महिलाओं में सामने आ रहे हैं.
इसी के बाद जर्मनी ने इस वैक्सीन का इस्तेमाल 60 वर्ष से कम उम्र के लोगों में बंद कर दिया. जर्मनी के फैसले के बाद कनाडा, स्पेन, फ्रांस और इटली ने भी ऐसे ही कदम उठाए.
ब्लड क्लॉटिंग लिंक के बाद ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन को लगा झटका
बता दें कि यूरोपीय औषधि नियामक संस्था ने कुछ समय पहले कहा था कि उसे ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन र रेयर बल्ड क्लॉटिंग के बीच में लिंक मिला है. हालांकि संस्था की तरफ से यह भी कहा गया है कि वैक्सीन से फायदा इतना ज्यादा है कि रेयर ब्लड क्लॉटिंग की घटनाओं की उपेक्षा भी की जा सकती है.
यूरोपीय यूनियन की इस संस्था ने वैक्सीन पर किसी भी तरह के प्रतिबंध से इनकार किया. लेकिन इसके बावजूद ब्लड क्लॉटिंग के साथ लिंक की खबर ने उन करोड़ों लोगों में चिंता पैदा कर दी, जिन्होंने कम से कम वैक्सीन का एक डोज भी लिया है.
अमेरिकी दवा कंपनियां मॉडर्ना और Pfizer की वैक्सीन के मुकाबले रखरखाव में आसान होने की वजह से एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन को दुनियाभर में प्राथमिकता दी जा रही थी. हालांकि Pfizer की वैक्सीन के 95 प्रतिशत एफिकेसी रेट के समक्ष एस्ट्राजेनेका वैक्सीन का एफिकेसी रेट 79 फीसदी ही है.
ब्लड क्लॉटिंग की खबरों के बाद कई यूरोपीय देशों में इस वैक्सीन से वैक्सीनेशन रोकने की खबरें आई थीं. दक्षिण कोरिया और फिलिपींस ने भी अपने यहां एस्ट्राजेनेका वैक्सीन का वैक्सीनेशन रोक दिया है.
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