नई दिल्ली। कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के कारण आम जनता पर आए आर्थिक दबाव को कम करने के लिए सरकार ने कई राहत नियम लागू किए थे, जो 31 अगस्त से खत्म हो गए हैं और 1 सितंबर से नए नियम लागू हो रहे हैं।
ये बदलाव आम जनता को आर्थिक रूप से प्रभावित करने वाले हैं। जिन चीजों में मुख्य रूप से बदलाव हुए हैं, उनमें एलपीजी, होमलोन, ईएमआई, विमान सेवाओं सहित कई और चीजें शामिल हैं।
अब चुकानी होगी कर्ज पर ईएमआई
कोरोना काल में आरबीआई ने ईएमआई चुकाने पर 6 महीने की मोहलत दी थी, जिसे मोरेटोरियम कहते हैं। 31 अगस्त को उसकी आखिरी तारीख समाप्त हो गई है।
कोरोना संकट के कारण वेतन में कटौती और नौकरी गंवाने से मध्यमवर्ग के लिए यह एक और बड़ा झटका है। ऐसे में 1 सितंबर से ईएमआई चुकाने वाले ग्राहकों को जेब पर असर पड़ेगा।
हवाई यात्रा होगी महंगी
नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने 1 सितंबर से घरेलू और अंतरराष्ट्रीय यात्रियों से उच्च विमानन सुरक्षा शुल्क (ASF) वसूलने का फैसला किया है। इसके बाद विमान सेवाएं महंगी हो गई हैं।
एएसएफ शुल्क के तौर पर घरेलू यात्रियों से अब 150 के बजाए 160 रुपए वसूला जाएगा, वहीं अंतरराष्ट्रीय यात्रियों से 4.85 डॉलर के बदले 5.2 डॉलर वसूला जाएगा।
एलपीजी की कीमतों में हो सकता है बदलाव
हर महीने की पहली तारीख को एलपीजी सिलेंडर की कीमतों में बदलाव होता है। ऐसे में 1 सितंबर से एलपीजी के दाम में बदलाव आ सकता है।
ऐसा माना जा रहा है कि कंपनियां एलपीजी, सीएनजी और पीएनजी कीमतें कम कर सकती हैं।
किराए में बढ़ोतरी के लिए कैब ड्राइवरों की हड़ताल
ऐप आधारित कार सेवा मुहैया कराने वाली कंपनी ओला और उबर ड्राइवरों ने दिल्ली-एनसीआर में किराए में बढ़ोतरी को लेकर 1 सितंबर से हड़ताल की धमकी दी है।
ड्राइवरों की किराए में बढ़ोतरी के अलावा लोन रीपेमेंट मोरेटोरियम के विस्तार की मांग की है।
जीएसटी भुगतान में देरी पर लगेगा ब्याज
1 सितंबर से जीएसटी के भुगतान में देरी की स्थिति में कुल टैक्स देनदारी पर ब्याज लगाया जाएगा। इस साल की शुरुआत में उद्योग ने जीएसटी भुगतान में देरी पर लगभग 46 हजार करोड़ रुपये के बकाया ब्याज की वसूली के निर्देश पर चिंता जताई थी। ब्याज कुल देनदारी पर लगाया गया था।
शेयर बाजार में पैसा लगाने वालों के नियम
शेयर बाजार में 1 सितंबर से आम निवेशकों के लिए मार्जिन के नए नियम लागू हो गए हैं। अब ब्रोकर की ओर से मिलने वाले मार्जिन का लाभ निवेशक नहीं उठा सकेंगे।
जितना पैसा वे अपफ्रंट मार्जिन के तौर पर ब्रोकर को देंगे, उतने के ही शेयर खरीद सकेंगे।