नई दिल्ली (ब्यूरो): कोरोना वायरस से उपजे हालात में हर तरह की आर्थिक गतिविधियां बंद पड़ी हुई हैं। ऐसे में सरकार ने लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को पूरा वेतन देने का अपना पुराना निर्देश वापस ले लिया है। यानी अब कंपनियां इसके लिए बाध्य नहीं होंगी कि लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को पूरा वेतन दें। इस कदम से कंपनियों और उद्योग जगत को राहत मिली है, लेकिन कामगारों को झटका लगा है।

ज्ञात रहे कि गृह सचिव अजय भल्ला ने लॉकडाउन लगाए जाने के कुछ ही दिन बाद 29 मार्च को जारी दिशानिर्देश में सभी कंपनियों व अन्य नियोक्ताओं को कहा था कि वे प्रतिष्ठान बंद रहने की स्थिति में भी महीना पूरा होने पर सभी कर्मचारियों को बिना किसी कटौती के पूरा वेतन दे। कोरेाना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए देश भर में 25 मार्च से लॉकडाउन लागू है। वहीं 18 मई से लॉकडाउन का चौथा चरण लागू हो चुका है। गृह मंत्रालय ने लॉकडाउन की शुरूआत में ही निर्देश दिया था कि उन मकान मालिकों के खिलाफ  कार्यवाही की जाएगी जो लॉकडाउन के दौरान किराया न दे पाने वाले स्टूडेंट्स या प्रवासी कामगारों को मकान खाली करने के लिए दबाव बना रहे हों।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपने एक आदेश में कहा था कि सरकार लॉकडाउन के दौरान पूरी सैलरी न दे पाने वाली कंपनियों पर किसी तरह की दंडात्मक कार्यवाही न करे। कर्नाटक की कंपनी फिकस पैक्स प्राइवेट लिमिटेड ने सरकार के इस आदेश को चुनौती दी थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया।निजी कंपनियों का कहना था कि यह आदेश मनमानी वाला है और इससे संविधान के अनुच्छेद 19(1) (द्द) जी का उल्लंघन होता है, जिसमें उन्हें कारोबार या व्यापार करने की गारंटी दी गई है।

गृह सचिव अजय भल्ला ने लॉकडाउन के चौथे चरण को लेकर 17 मई को जो नया दिशानिर्देश जारी किया है, उसमें छह प्रकार के मानक परिचालन प्रोटोकॉल का जिक्र है। इनमें से ज्यादातर लोगों की आवाजाही से संबंधित हैं।