Prabhat Times
New Delhi नई दिल्ली। (ravana is worshiped on vijayadashami in india) देशभर में विजयदशमी का पर्व बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है. इस पर्व को बुराई पर अच्छाई के जीत के प्रतीक स्वरूप में मनाया जाता है.
देशभर में रावण के बड़े बडे पुतले लगाकर उसका दहन किया जाता है, लेकिन भारत में ही दो जगह ऐसी हैं जहां रावण को पूजा जाता है।
पंजाब, मध्य प्रदेश और यू.पी. में रावण के मंदिर हैं। पंजाब के लुधियाना के शहर खन्ना में तथा मध्य प्रदेश में तो दशहरा के दिन रावण की पूजा होती है और रावण दहन तक नहीं किया जाता, जबकि यू.पी. के कानपुर में स्थित रावण का मंदिर है, जो सिर्फ दशहरा के दिन ही खुलता है और लोग रावण की पूजा अराधना करते हैं।
आइए बताते हैं दोनों जगह पर क्यों होती है रावण की पूजा
पंजाब के जिला लुधियाना के शहर पायल में चार वेदों के ज्ञाता रावण को जलाया नहीं जाता, बल्कि उसकी विधिवत पूजा की जाती है। यह पूजा पूरे दिन चलती रहती है। यहां पौने 200 साल पुराना रावण का मंदिर है।
जानकारों की माने तो यह प्रथा 1835 से चलती आ रही है, जिसे दुबे बिरादरी के लोग निभाते आ रहे हैं। इस बिरादरी के लोग देश-विदेशों से यहां आकर रामलीला और दशहरा मेले का आयोजन करते हैं।
रावण की विधिवत पूजा करते हैं, इसके साथ यहां पर बने 178 वर्ष पुराने मंदिर में भगवान श्रीराम चंद्र और लक्ष्मण, हनुमान व सीता माता की पूजा भी की जाती है।
विजय दशमी से पहले रामलीला भी की जाती है
पायल में रावण की 25 फीट की विशाल प्रतिमा स्थापित है। जहां 1835 से दुबे वंशजों द्वारा विजय दशमी पर रावण की पूजा की जाती है।
लोग खून का तिलक लगाकर माथा टेकते हैं। वहीं, विजय दशमी से पहले यहां विधिवत तरीके से रामलीला भी की जाती है। लोग विजय दशमी को यहां आकर रावण की पूजा करते हैं।
रावण भले ही बुराई का प्रतीक माना जाता है और विजय दशमी पर उसके पुतले जलाए जाते हैं, मगर यहां आज के दिन भगवान श्री राम के साथ रावण को भी पूजा जाता है।
मध्य प्रदेश के मंदसौर दशहरे के दिन रावण की पूजा, लोग मानते हैं अपना दामाद
आज पूरा भारत दशहरा मना रहा है. दशहरा की शाम हर तरफ आपको रावण जलता हुआ नजर आएगा.
दरअसल, पूरा भारत रावण को बुराई का प्रतीक मानकर दशहरा के दिन जलाता है.
लेकिन इसी देश में एक ऐसी जगह है जहां रावण की पूजा होती है. यहां तक कि इस जगह के लोग रावण को अपना दामाद मानते हैं.
कहां है ये जगह?
हम जिस जगह की बात कर रहे हैं वो मध्य प्रदेश में है. दरअसल, मध्य प्रदेश के मंदसौर में रावण को लोग अपना दामाद मानते हैं, यही वजह है कि यहां लोग इसकी पूजा करते हैं.
कहा जाता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी का मंदसौर में घर था, इसीलिए यहां के लोग आज भी रावण को अपना दामाद मानते हैं.
रावण के पुतले की पूजा होती है
एक तरफ जहां पूरे देश में दशहरा की शाम रावण का का दहन किया जाता है. मंदसौर में इस पुतले की पूजा होती है. वहीं मंदसौर के रूंडी में तो रावण की एक मूर्ती भी बनी हुई है जिसकी पूजा होती है.
यहां लोग रावण को फूल माला चढ़ा कर उसकी पूजा करते हैं. मंदसौर के अलावा कई और जगहें भी हैं जहां रावण की पूज होती है. भारत के अलावा और श्रीलंका में भी कई जगह रावण की पूजा होती है.
यहां अभी मौजूद है रावण का शव
ऐसा माना जाता है कि श्रीलंका के रगैला के जंगलों में करीब 8 हजार फीट की ऊंचाई पर रावण का शव रखा गया है.
लोगों का मानना है कि यहां रावण के शव को ममी के रूप में संरक्षित रखा गया है. श्रीलंका घूमने जाने वाले लोगों के लिए ये जगह और रावण का महल बहुत बड़ा टूरिस्ट डेस्टिनेशन है. यही वजह है कि हर साल इस जगह से श्रीलंका सरकार को काफी फायदा होता है.
यू.पी. के कानपुर में दशहरा के दिन खुलता है रावण का मंदिर
यू.पी. के कानपुर में एक ऐसा मंदिर भी मौजूद है, जहां रावण को भगवान के रूप में पूजा जाता है. यह मंदिर कानपुर के शिवाला में मौजूद है.
इस मंदिर के पट सिर्फ और सिर्फ विजयादशमी यानी दशहरा के दिन खोले जाते हैं. जबकि सुबह रावण पूजन किया जाता है और लोग अपने बच्चों को बल, बुद्धि और ज्ञान का वर मांगते हैं.
कानपुर महानगर के शिवाला इलाके में मौजूद कैलाश मंदिर परिसर में दशानन रावण का बेहद प्राचीन मंदिर मौजूद है.
यह मंदिर लगभग 200 साल से अधिक पुराना है और हर साल सिर्फ दशहरा के दिन यह मंदिर खोला जाता है.
यहां पर रावण को भगवान के रूप में पूजा जाता है. दूर-दूर से भक्त इस मंदिर में विजयदशमी के दिन दर्शन करने आते हैं.
श्रद्धालुओं और पुजारी का कहना है कि रावण दुनिया में सबसे अधिक बलशाली और बुद्धिशाली था. उसके बल और बुद्धि के आगे बड़े-बड़े विद्वान भी नतमस्तक थे.
जिस वजह से उनके परिवार के बच्चे भी बुद्धिशाली और बलशाली थे. इसकी पूजा अर्चना रावण के चरणों में की जाती है. वहीं, शाम को रावण के अहंकार स्वरूप का दहन भी किया जाता है.
सिर्फ दशहरे पर खुलता है मंदिर
कानपुर में मौजूद ये मंदिर भी अपने आप में अलौकिक और अद्भुत है जो सिर्फ और सिर्फ दशहरा के दिन खुलता है.
सुबह से भक्तों की भीड़ दूर-दूर से यहां पर आती है और भगवान के रूप में रावण की पूजा की जाती है.
पूजा पाठ करने के बाद एक बार फिर यह मंदिर एक साल के लिए बंद कर दिया जाता है. अगले साल फिर दशहरा के दिन मंदिर के पट दोबारा खोले जाते हैं.
विद्वान होने के चलते की जाती है पूजा
मंदिर के पुजारी राम बाजपेई ने बताया कि रावण बेहद विद्वान और पराक्रमी था. उसे 10 महाविद्याओं का पंडित भी कहा जाता था. इसी वजह से इस मंदिर में पूजा की जाती है.
इस मंदिर का महत्व यह है कि जो भी आज के दिन रावण की पूजा करता है उसे विद्या और पराक्रम दोनों एक साथ मिल जाता है.
पुजारी का दावा है कि रावण की मृत्यु के बाद भगवान राम ने भी लक्ष्मण उसके (रावण) चरण स्पर्श के लिए बोला था.
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