नई दिल्ली। अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही एक प्रथा को मोदी सरकार ने अब तोड़ दिया है। दरअसल बात ये है कि रेल मंत्रालय के बाबूओं को अब बंगलो पियून या टेलीफोन अटेंडेंट कम डाक खलासी नहीं मिलेगा। ये रूल रेल मंत्रालय ने तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया है।
अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही एक प्रथा को मोदी सरकार ने अब खत्म कर दिया है। दरअसल बात ये है कि रेल मंत्रालय के साहबों को अब बंगलो पियून या टेलीफोन अटेंडेंट कम डाक खलासी (TADK) नहीं मिलेगा। इस बारे में रेलवे बोर्ड ने कल ही एक चिट्ठी जारी कर सभी जोनल रेलवे के जीएम को सूचना भेज दी है।क्या होता है बंगलो पियून और कैसे मिलती है ये नौकरी
रेलवे के अधिकारियों को घर में काम करने के लिए 24 घंटे का एक नौकर मिल जाता है। उसे रेलवे बोर्ड और उत्तर रेलवे में टेलीफोन अटेंडेंट कम डाक खलासी कहा जाता है। पूर्व रेलवे तथा कुछ अन्य जोनल रेलवे में इसे बंगलो पियून कहा जाता है।इसकी भर्ती के लिए कोई परीक्षा नहीं होती. रेल अधिकारी जिसे चाहे भर्ती कर लेते हैं और वह रेलवे का कर्मचारी बनकर साहब के बंगले पर घरेलू काम करता है। आम तौर पर 3 साल तक वह साहब के घर पर काम करता है।
उसके बाद उसे रेलवे के आफिस, ओपन लाइन, या वर्कशॉप में तैनात कर दिया जाता है। इसके साथ ही साहब दूसरे बंगलो पियून को नौकरी पर रख लेते हैं।
IAS को भी नहीं मिलती है ये खास सुविधा
IAS सबसे पावरफुल माने जाते हैं। लेकिन बंगलो पियून की सुविधा उन्हें भी नहीं है। यही वजह है कि रेल अधिकारियों की यह सुविधा उन्हें खटक रही थी। तभी तो पांचवें पे कमीशन से ही इस बारे में कुछ न कुछ टिप्पणी की जा रही है। लेकिन रेलवे के अधिकारियों की लॉबियिंग की वजह से यह सुविधा बची थी।
किन अधिकारियों को मिलता है बंगलो पियून
रेलवे में फील्ड में तैनात सीनियर लेवल के अधिकारियों (यदि ब्रांच हेड हो तो) से बंगलो पियून की सुविधा शुरू हो जाती है। डिविजनों में तैनात जूनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड (JAG) के अधिकारियों को तो यह सुविधा मिल ही जाती है।
इसके बाद तो जैसे ही ट्रांसफर हुआ, नया बंगलो पियून आ गया। यदि कोई अधिकारी कहीं 5 साल तक जमे रह गए तो हर तीन साल में किसी दूसरे व्यक्ति की भर्ती हो जाएगी।
पीएमओ से मिला बंद करने का आदेश
खबरों की माने तो रेल अधिकारियों की बंगलो पियून की सुविधा की चर्चा प्रधानमंत्री तक के कानों तक पहुंची थी। उन्हीं के हस्तक्षेप के बाद इस सुविधा को खत्म करने पर रेलवे बोर्ड सहमत हुआ है।