जालंधर (ब्यूरो): कोरोना वायरस एक और जहां जिंदगीयों से खेल रहा है वहीं कारोबार को भी तगड़ा नुकसान झेलना पड़ रहा है। लोगों के साथ-साथ राज्य सरकार तक को आर्थिक तंगी से जूझना पड़ रहा है। आर्थिक तंगी से निकलने के लिए राज्य सरकार द्वारा शराब ठेके खोलने की जुगत भी अब किसी काम नहीं आ रही है। शराब ठेके खोलने की अनुमति तो हुई, लेकिन फिर भी ठेके न खुलना परेशानी का सबब बन गया है।
शराब ठेके खोलने के मुद्दे पर शराब ठेकेदार और सरकार तो आमने सामने है ही, लेकिन अब इस मुद्दे पर राज्य के राजनेता भी आमने-सामने आ गए हैं। राज्य के कुछ राजनेता शराब ठेकेदारों के नुकसान की भरपाई के लिए अवैध शराब के कारोबार पर सख्ती कर पूरी तरह से बंद करवाने की सलाह दे रहे हैं, लेकिन वहीं कुछ नेता इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि शराब ठेकेदारों के नुकसान की भरपाई सरकार अपने जेब यानिकि रिलेक्सेशन पैकेज से करे।ठेके खोलने को लेकर शराब ठेकेदारों और सरकार के बीच चल रही कोल्ड वॉर सभी के सामने हैं। इसी मुद्दे पर केबिनेट की बैठक में भी हंगामा हो चुका है। एक मत न होने के कारण केबिनेट की बैठक भी स्थगित करनी पड़ी।
अति सुविज्ञ सूत्रों से पता चला है कि इस मामले में अब राजनेता भी दो गुटों में बंट चुके हैं। एक गुट ऐसा है जो कि शराब फैक्ट्रियों को समर्थन करता है, जबकि दूसरा गुट शराब ठेकेदारों की भरपाई के लिए ऐसी सलाह दे रहा है, जिससे सरकार पर भी बोझ न पड़े।
सूत्रों के मुताबिक सरकार पर आर्थिक बोझ न पड़े इसलिए सलाह दी गई कि राज्य में अवैध शराब की बिक्री पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया जाए। अगर सरकार अवैध शराब की बिक्री पूरी तरह से रोक लगा दे तो ऐसी वर्ष अंत तक शराब ठेकेदारों के नुकसान की भरपाई हो सकती है। शराब ठेकेदार अपने ठेकों पर निर्धारित मूल्यों पर शराब बेच सकते हैं।इसके दो फायदे ये होंगे कि एक तरफ तो शराब का अवैध धंधा बंद होगा और दूसरा ये कि शराब ठेकेदारों द्वारा मांगी जा रही रिलेक्सेशन का आर्थिक बोझ सरकार पर नहीं पडेगा। सरकार को अपना रैविन्यू पूरा मिलेगा।
लेकिन नेताओं का दूसरे पक्ष का मत है कि सरकार शराब ठेकेदारों के नुकसान की भरपाई जेब से करे, कोई रिलेक्सेशन या पैकेज घोषित कर दे। बेशक इस पक्ष द्वारा शराब फैक्ट्रियों के बारे में कोई चर्चा नहीं की गई।
लेकिन जानकार सूत्र बताते हैं कि इस तर्क का मतलब अप्रत्यक्ष रूप से ये निकलता है कि अवैध शराब की बिक्री को लेकर कोई कड़ा कानून न बने। सूत्र बताते है कि अगर सरकार कुछ ऐसा मंथन करती है तो इसका सीधा नुकसान फैक्ट्रियों को ही होगा। क्योंकि फैक्ट्रियों के ज़रिए ही शराब बिक्री समानांतर धंधा राज्य में चलता है।सूत्र बताते हैं कि एक पक्ष की मानी जाए तो अवैध शराब की बिक्री पूर्णतः प्रतिबंध के फैसले से सरकार का रूतबा भी बढ़ेगा और दूसरा इस मौजूदा हालात में आर्थिक तौर पर बोझ भी नहीं पड़ेगा। लेकिन अगर ऐसा नहीं किया जाता तो सरकार को ठेकेदारों के साथ कुछ न कुछ नैगोसिएशन करनी ही पड़ेगी। देखना है कि अब सोमवार को होने जा रही केबिनेट की बैठक में ऊंट किस करवट बैठता है।