चंडीगढ़ (ब्यूरो): कोरोना वायरस से निपटने की तैयारी में ‘वेंटिलेटर’ की भूमिका अहम है। कोरोना से ग्रसित गंभीर मरीजों का इलाज इसी खास उपकरण में किया जाता है, लेकिन देश में इसकी भारी कमी है। कोरोना की लड़ाई में यह एक चिंताजनक बात भी है।
हालांकि, इस बीच पीजीआई के एनिस्थीसिया व इटेंसिव केयर के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राजीव चौहान ने वेंटिलेटर के विकल्प के तौर पर आटोमैटिक एंबू बैग तैयार किया है, जो एक तरह से वेंटिलेटर का ही काम करता है। इस मशीन के माध्यम से पेशेंट को सांस लेने में दिक्कत नहीं आती है।
वेंटिलेटर के मुकाबले इसकी कीमत बहुत कम है। एक वेंटिलेटर की कीमत दस से 12 लाख है और उसके संचालन के लिए एक ट्रेंड स्टाफ की आवश्यकता पड़ती है, जबकि ऑटोमैटिक एंबू बैग की कीमत करीब 15 से 17 हजार है।
स्वास्थ्य अधिकारियों की भी यही चिंता है कि यदि कोरोना ने तेजी से पांव पसारे तो मरीजों के लिए वेंटिलेटर कहां से लाएंगे? ऐसी स्थिति में कोरोना की लड़ाई में यह एक बड़ा हथियार बन सकता है।
बाजार में अभी जो एंबू बैग मौजूद हैं, वे मैनुअल है यानी कि उसे चलाने के लिए एक व्यक्ति की आवश्यकता पड़ती और बिना एक सेकेंड रुके उसे लगातार चलाना पड़ता है।
पीजीआई डॉक्टर व हिमाचल के मूल निवासी डॉ. राजीव चौहान ने बताया कि उन्होंने साल 2018 में इसकी तैयारी शुरू की थी। उस दौरान पेक के स्टूडेंट्स उनके साथ जुड़े थे, लेकिन कामयाबी नहीं मिली।
बाद में बंगलूरू स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस के दो युवा इंजीनियर ईशान दार व आकाश से डॉ. राजीव ने अपना आइडिया शेयर किया और मशीन का आविष्कार का दिया। मशीन का पेटेंट फाइल कर दिया गया है और उसकी कार्रवाई चल रही।
अब सरकार आगे आए
ऑटोमैटिक एंबू बैग मशीन बन कर तैयार हो चुकी है, अब सरकार को चाहिए कि वे इसका प्रोडक्शन कर बाजार में उतारे, ताकि कोरोना की जंग लड़ी जा सके।
प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से पहले ही कहा जा चुका है कि ज्यादा से ज्यादा वेंटिलेटर बनाए जाएं। ऐसे में सरकार को इन युवा इनोवेटर के आइडिया पर काम करना चाहिए।
क्योंकि कोरोना वायरस तीसरे फेज में जाने वाला है, जहां गंभीर मरीजों को इलाज के लिए वेंटिलेटर पड़ सकती है।
कोरोना के इलाज में क्यों जरूरत पड़ती है वेंटिलेटर की
कोरोना का संक्रमण जब किसी इंसान के अंदर गंभीर हो जाता है तो उसे सांस लेने में दिक्कत आती है। ऐसे में उसे कृत्रिम सांस देने की आवश्यकता पड़ती है।
इसके लिए मरीज का इलाज आईसीयू में ही किया जाता है। इटली व ईरान में वेंटिलेटर की कमी पड़ गई है। यदि यहां मरीज बढ़े तो हाल और खराब हो सकते हैं।
भारत में मात्र 40-50 हजार ही वेंटिलेटर हैं। इनमें से अधिकतर गंभीर मरीजों के इलाज में लगे हैं।
हालांकि, भारत सरकार ने कई बड़ी कंपनियों से कहा है कि वे जल्द से जल्द वेंटिलेटर व अन्य उपकरण बनाएं। इसी के तहत डॉ. राजीव का आइडिया भी कोरोना की लड़ाई में काफी अहम साबित हो सकता है।
डॉ. राजीव ने जो मशीन बनाई है, उसका वीडियो मैंने देखा है। यदि यह मशीन मार्केट में आती है तो इसका लाभ मिलेगा। इसके लिए मैं एनेस्थीसिया डिपार्टमेंट और डॉ. राजीव को बधाई देना चाहता हूं।