Prabhat Times

जालंधर। (Crores of scam happened during the tenure of Sports Minister Pargat Singh, big disclosure of this former PCS officer of Punjab) चर्चित स्पोर्ट्स व्हिसल ब्लोअर इकबाल सिंह संधू ने चन्नी सरकार के 111 दिनों के भीतर पंजाब खेल विभाग में करोड़ों रुपये के डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) स्पोर्ट्स किट खरीद घोटाले का पर्दाफाश किया है।
38 साल से सुरजीत हॉकी सोसायटी के महासचिव इस पद पर आसीन रहे इकबाल सिंह संधू ने खेल किट खरीद घोटाले का खुलासा करते हुए कहा कि 16 दिसंबर 2021 को स्पोर्ट्स ब्लोअर ब्लोअर के रूप में विभिन्न समाचार पत्र, सोशल मीडिया एवं खेल विभाग के विभिन्न अधिकारियों और खेल मंत्री ओलंपियन परगट सिंह को ईमेल और व्हाट्सएप के माध्यम से अग्रिम रूप से सूचित किया था। जब खेल विभाग के निदेशक (प्रशिक्षण) सुखवीर सिंह ग्रेवाल ने कथित तौर पर करोड़ों रुपये का खेल किट खरीद घोटाला रचा जा रहा था। लेकिन पंजाब खेल विभाग द्वारा इस पर संज्ञान नहीं लिया गया। संधू के मुताबिक, पंजाब में रेत, ड्रग, शराब, ट्रांसपोर्ट, केबल और भू-माफिया के बाद चन्नी सरकार के 111 दिनों के भीतर ‘खेल माफिया’ के नाम से एक नई एंट्री हुई है, जिसका श्रेय पंजाब खेल विभाग जाता है ।
पूर्व पीसीएस अधिकारी संधू ने बताया कि खेल विभाग के पास खेल किट की खरीद के लिए 3.33 करोड़ रुपये का बजट है, विधान सभा चुनाव अंतर्गत कोडऑफ कंडक्ट जल्द लगने के डर से तथा टेंडर प्रक्रिया के लिए समय कम होने कारण खेल विभाग ने किट्स की खरीद के लिए सरकार की डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) योजना लाते हुए प्रति खिलाड़ी 3,000 सीधे उसके बैंक खाते में ट्रांसफर का फैसला किया गया ताकि वे अपनी पसंद के अनुसार खुद ही खेल किट खरीद सकें। इस उद्देश्य के लिए खेल विभाग द्वारा एक गूगल शीट तैयार कर अपलोड की गई और प्रत्येक खिलाड़ी को अपने कोच के माध्यम से अपने पूरे डेटा के साथ बैंक विवरण भर दिया  गया।
इकबाल सिंह संधू ने बताया कि वास्तव में डेटा इकट्ठा करना और रुपये के प्रत्यक्ष बैंक हस्तांतरण करने की अच्छी भूमिका खेल विभाग के अच्छी छवि वाले डायरेक्टर परमिंदरपाल सिंह की रही लेकिन इस घोटाले के मास्टरमाइंड सुखवीर सिंह ग्रेवाल, निदेशक (प्रशिक्षण), जिन्होंने पहले से ही स्पोर्ट्स किट निर्माण फर्मों के साथ साठ गांठ पहले ही की हुई थी, ने पंजाब भर के जिला खेल अधिकारियों के माध्यम से कोचों को निर्देश जारी कर दिए थे कि जिस दिन यह 3,000 प्रति खिलाड़ी, खिलाड़ियों से बैंक खाते में स्थानांतरण हो जाते हैं, अगले दिन फ्लां फलां फर्म के नाम का ड्राफ्ट या चेक वापस ले लिया जाना चाहिए और खेल किट उस फर्म द्वारा सप्लाई की जाएगी।
संधू ने आगे कहा कि जिन खिलाड़ियों को तब तक बैंक चेक बुक जारी नहीं हुई थी, कोच को हदायत की गई के वह उनके माता-पिता का चैक फर्म के नाम पर ले सकते हैं। गरीब खिलाड़ियों के माता-पिता ने भी स्पोर्ट्स व्हिस्ल ब्लोअर मेरे ध्यान में लाया कि उन्होंने पहले उनके 2-2 दिन खराब कर 500-500 रुपए जेब से भर बैंक खाता खुलवाया तथा एक और दिहाड़ी खराब कर करीब 100 रुपए खर्च कर 3,000 रुपए का बैंक ड्राफ्ट बनाया ओर उल्टा उन्हें मिला लगभग 1500 रुपये की एक स्पोर्ट्स किट, तीन दिहाड़ी अलग से खरा हुई ओर ड्राफ्ट बनाने का खर्च अलग देना पड़ा।
संधू ने पंजाब के लोगों और विशेष रूप से खेल मंत्री, पंजाब ओलंपियन परगट सिंह के निर्वाचन क्षेत्र के लोगों से अपील की कि खेल माफिया के मास्टरमाइंड और उन्हें आश्रय प्रदान करने वालों को बेनकाब करने के लिए उपरोक्त लिंक का उपयोग करें।
उल्लेखनीय है कि अकेले जालंधर में ही लगभग 77 चेक फेल हो चुके हैं और संबंधित कोचों की स्थिति बहुत दयनीय हो गई है क्योंकि चेक फेल होने की स्थिति में फर्म को राशि का भुगतान करने की जिम्मेदारी भी कोचों की ही तय की गई है ।
संधू ने कहा कि इस घोटाले के मास्टरमाइंड सुखवीर सिंह ग्रेवाल, निदेशक (प्रशिक्षण) वही व्यक्ति हैं जो वर्ष 2018 तक इस पद पर रहे ओर उन्हें वित्तीय घोटालों और अनियमितताओं में करोड़ों रुपये का दोषी पाया गया। खेल मंत्री ओलंपियन परगट सिंह ने सभी नियमों और विनियमों का उल्लंघन कर उन्हें उसी पद पर 69 वर्ष की आयु में निदेशक (प्रशिक्षण) के रूप में फिर से नियुक्त किया है जिस की चर्चा खूब स्पोर्ट्स क्षेत्र जोरों पर है।
संधू ने आखिरकार पंजाब में अपनी तरह के पहले करोड़ों रुपये के डीबीटी स्पोर्ट्स किट खरीद घोटाले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन करके के लिए पंजाब के राज्यपाल और मुख्य सचिव, पंजाब से इस घोटाले को जल्द जांच कर इस घोटाले को तुरंत सार्वजनिक करने की मांग करते हुए इस घोटाले में शामिल सभी व्यक्तियों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई करने की अपील भी की है।
संधू ने सरकार से यह भी अपील की है कि घोटाले के मास्टरमाइंड सुखवीर सिंह ग्रेवाल, निदेशक (प्रशिक्षण) को तत्काल निलंबन किया जाए ताकि वह जांच को प्रभावित न कर सकें।

ये भी पढ़ें