Prabhat Times
New Delhi नई दिल्ली। (NCERT recommends replacing India with ‘Bharat’ in textbooks) देश के छात्र छात्राएं जल्द ही किताबों में इंडिया की जगह देश का नाम भारत पढ़ेंगे.
इंडिया की जगह भारत नाम होने की बात काफी समय से चर्चा में है. अब इसपर NCERT ने फैसला लिया है.
NCERT के डायरेक्टर सी आई इसाक ने कक्षा 12वीं की बुक्स में इंडिया की जगह भारत करने का फैसला लिया है.
एनसीईआरटी के 12वीं क्लास के किताबों में नाम बदलने का फैसला विशेष पैनल ने लिया है.
पैनल के सदस्यों में से एक सीआई इस्साक के मुताबिक, नई एनसीईआरटी किताबों के नाम में बदलाव होगा.
यह प्रस्ताव कुछ महीने पहले रखा गया था और अब इसे स्वीकार कर लिया गया है.
NCERT पैनल के मंजूरी के बाद ये सारी नई किताबों में भारत नाम लागू होगा.
इसाक ने बताया कि एनसीईआरटी समिति ने बुक्स में प्राचीन इतिहास के स्थान पर क्लासिकल हिस्ट्री शुरू करने की सिफारिश की
इतिहास के किताबों में बदलाव
एनसीईआरटी समिति ने भी पाठ्यपुस्तकों में “हिंदू जीत” को उजागर करने की सिफारिश की है.
इसने पाठ्यपुस्तकों में ‘प्राचीन इतिहास’ के स्थान पर ‘शास्त्रीय इतिहास’ को शामिल करने की भी सिफारिश की है.
बता दें कि साल 2020 में नई एजुकेशन पॉलिसी के आने के बाद ये बदलाव किए जा रहे हैं.
अप्रैल महीने में एनसीईआरटी की ओर से कक्षा 10वीं, 11वीं और 12वीं के सिलेबस में बदलाव किए गए थे. किताबों में कई टॉपिक्स हटा दिए गए थे.
इन बदलावों का विरोध किया जा रहा है. विज्ञान की बुक्स से कई टॉपिक हटाए गए थे.
कई वैज्ञानिकों, विज्ञान शिक्षकों और अन्य शिक्षकों ने सीबीएसई के दसवीं कक्षा के अपडेटेड एनसीईआरटी सिलेबस को लेकर नाराजगी जताई थी.
इंडिया से भारत करने का ये है उद्देश्य
आइए जानते हैं कि आखिर इंडिया की जगह भारत करने के पीछे का उद्देश्य क्या है. साथ ही वो कहानी भी जानते हैं कि आखिर किन हालातों में देश को इंडिया नाम मिला.
दरअसल प्राचीन काल से ही हमारे देश के अलग-अलग नाम रहे हैं. प्राचीन ग्रंथों में देश के अलग-अलग नाम लिखे गए- जैसे जम्बूद्वीप, भारतखंड, हिमवर्ष, अजनाभ वर्ष, आर्यावर्त तो वहीं अपने-अपने जमाने के इतिहासकारों ने हिंद, हिंदुस्तान, भारतवर्ष, इंडिया जैसे नाम दिए. लेकिन इनमें भारत सबसे ज्यादा लोकप्रिय रहा.
विभिन्न स्रोतों से पता चलता है कि विष्णु पुराण में इस बात का जिक्र है कि ‘समुद्र के उत्तर से लेकर हिमालय के दक्षिण तक भारत की सीमाएं निहित हैं.
विष्णु पुराण कहता है कि जब ऋषभदेव ने नग्न होकर गले में बांट बांधकर वन प्रस्थान किया तो अपने ज्येष्ठ पुत्र भरत को उत्तराधिकार दिया जिससे इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ गया.
हम भारतीय आम बोलचाल में भी इस तथ्य को बार-बार दोहराते हैं कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक हमारा पूरा राष्ट्र बसता है. ये भारत का एक छोर से दूसरा छोर है.
इंडिया नाम कैसे मिला?
अंग्रेज जब हमारे देश में आए तो उन्होंने सिंधु घाटी को इंडस वैली कहा और उसी आधार पर इस देश का नाम इंडिया कर दिया.
यह इसलिए भी माना जाता है क्योंकि भारत या हिंदुस्तान कहने में मुश्किल लगता था और इंडिया कहना काफी आसान. तभी से भारत को इंडिया कहा जाने लगा.
‘इंडिया’ शब्द हटाने के मांग क्यों?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद-1 में भारत को लेकर दी गई जिस परिभाषा में ‘इंडिया, दैट इज भारत’ यानी ‘ इंडिया अर्थात भारत’ के जिन शब्दों का इस्तेमाल किया गया है, उसमें से सरकार ‘इंडिया’ शब्द को निकालकर सिर्फ ‘भारत’ शब्द को ही रहने देने पर विचार कर रही है.
साल 2020 में भी इसी तरह की कवायद शुरू हुई थी. संविधान से ‘इंडिया’ शब्द हटाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की गई थी.
याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई थी कि इंडिया शब्द गुलामी की निशानी है और इसीलिए उसकी जगह भारत या हिंदुस्तान का इस्तेमाल होना चाहिए.
अंग्रेजी नाम का हटना भले ही प्रतीकात्मक होगा, लेकिन यह हमारी राष्ट्रीयता, खास तौर से भावी पीढ़ी में गर्व का बोध भरने वाला होगा.
हालांकि तब कोर्ट ने ये कहकर याचिका खारिज कर दी थी कि हम ये नहीं कर सकते क्योंकि पहले ही संविधान में भारत नाम ही कहा गया है.
राष्ट्रपति ने की थी शुरुआत
एनसीईआरटी पैनल की सिफारिश इन अटकलों को खारिज करती है कि क्या देश का नाम बदलकर ‘भारत’ रखा जाएगा.
इस साल की शुरुआत में चर्चा तब शुरू हुई जब केंद्र ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा आयोजित जी20 रात्रिभोज के निमंत्रण को “भारत के राष्ट्रपति” के नाम पर भेज दिया, जिससे राजनीतिक विवाद शुरू हो गया.
इसके बाद सितंबर में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की ‘भारत’ नेमप्लेट को मेज पर प्रदर्शित किया गया था.
दिल्ली के प्रगति मैदान में भारत मंडपम में जी20 लीडर्स शिखर सम्मेलन को संबोधित करते समय पीएम मोदी के मेज पर भारत लिखा देखा गया था.
एनसीईआरटी की समिति ने स्कूल पाठ्यपुस्तकों में इंडिया की जगह भारत लिखने की सिफारिश की.
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