Prabhat Times
नई दिल्ली। नए कृषि कानून के विरोध में हरियाणा-पंजाब के किसानों का प्रदर्शन 5वें दिन भी जारी है।
वे इस वक्त दिल्ली-हरियाणा के सिंघु बॉर्डर पर डटे हुए हैं। किसान संगठनों ने बुराड़ी मैदान में जाने के बाद केंद्र सरकार के साथ बातचीत के प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया।
किसानों के हुंकार से नवंबर की ठंड में भी दिल्ली में तपिश महसूस हो रही है। दिल्ली के सारे बार्डर सील कर दिए गए हैं। भारी पुलिस फोर्स तैनात हो चुकी है।
लेकिन इतिहास के झरौखे में जाएं तो 32 साल पहले भी दिल्ली में ऐसा ही नजारा था। तब इससे भी बड़े पैमाने पर किसान आकर दिल्ली के बोट क्लब में इकट्ठा हुए थे।
वह दौर था किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत का, जिनके नेतृत्व में 5 लाख किसानों ने अपनी मांगों को लेकर दिल्ली के वोट क्लब में रैली की थी।
जब-जब कृषि आंदोलनों की बात होती है तो किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत का जिक्र जरूर होता है।
उनका अंदाज ठेठ गंवई वाला था जो आंदोलन के दौरान मंच पर नहीं बल्कि हुक्का गुड़गुड़ाते हुए किसानों के बीच बैठ जाते थे।
एक दौर वह भी आया जब उनके नेतृत्व में हुए आंदोलन से सत्तारूढ़ दल को अपनी रैली की जगह बदलनी पड़ी थी।
एक आवाज पर इकट्ठा हो गए थे लाखों किसान
महेंद्र सिंह टिकैत को किसानों का मसीहा कहा जाता था। किसानों के बीच वह बाबा टिकैत कहलाते थे।
किसानों के बीच उनकी ऐसी पहुंच थी कि एक उनकी आवाज में लाखों किसान इकट्ठा हो जाते थे।
उस रोज भी दिल्ली में ऐसा ही हुआ था। 25 अक्टूबर 1988 को महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में दिल्ली के बोट क्लब में किसानों की रैली की तैयारी थी।
पुलिस की फायरिंग और 2 किसानों की मौत
बिजली, सिंचाई की दरें घटाने और फसल के उचित मूल्य सहित 35 सूत्री मांगों को लेकर पश्चिमी यूपी से बड़ी संख्या में किसान दिल्ली पहुंच रहे थे।
प्रशासन ने किसानों को रोकने के लिए पुलिस बल का इस्तेमाल किया।
लोनी बॉर्डर पर किसानों को रोकने के लिए पुलिस ने फायरिंग भी कर दी जिसमें दो किसान राजेंद्र सिंह और भूप सिंह की मौत हो गई।
पुलिस की काफी किरकिरी हुई और उधर किसान भी उग्र हो उठे। बावजूद इसके उन्हें दिल्ली जाने से कोई रोक नहीं पाया।
14 राज्यों से 5 लाख किसान पहुंचे थे
बताते हैं कि करीब 14 राज्यों के 5 लाख किसानों ने उस वक्त दिल्ली में डेरा जमाया था। किसानों के समूह ने विजय चौक से लेकर इंडिया गेट तक कब्जा कर लिया था।
पूरी दिल्ली ठप हो गई थी। किसानों ने अपने ट्रैक्टर और बैल गाड़ियां भी बोट क्लब में खड़े कर दिए थे।
‘सरकार बात नहीं सुन रही है, इसलिए यहां आए है’
उस वक्त बोट क्लब में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि (30 अक्टूबर) के लिए तैयारियां चल रही थीं। मंच बनाया जा रहा था।
किसान उसी मंच पर बैठ गए। तब टिकैत ने केंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि सरकार उनकी बात नहीं सुन रही इसलिए वे यहां आए हैं। ठेठ गंवई अंदाज वाले बाबा टिकैत ने किसानों के साथ वहां 7 दिन तक धरना दिया था।
कांग्रेस को बदलनी पड़ी थी रैली की जगह
टिकैत के नेतृत्व में 12 सदस्यीय कमिटी का गठन हुआ जिसने तत्कालीन राष्ट्रपति और लोकसभा अध्यक्ष से मुलाकात की लेकिन कोई फैसला नहीं हो सका।
प्रदर्शनरत किसानों को हटाने के लिए पुलिस ने 30 अक्टूबर 1988 की रात उन पर लाठीचार्ज कर दिया। किसान फिर भी नहीं डिगे।
किसान के प्रदर्शन के चलते कांग्रेस को इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि की रैली का स्थान बदलना पड़ा था। कांग्रेस ने बोट क्लब के बजाय लालकिला के पीछे वाले मैदान में रैली की थी।
और आखिरकार सरकार को झुकना पड़ा
तब टिकैत ने तत्कालीन राजीव गांधी सरकार पर गरजते हुए कहा था, ‘प्रधानमंत्री ने दुश्मन जैसा व्यवहार किया है।
किसानों की नाराजगी उन्हें सस्ती नहीं पड़ेगी।’ आखिरकार केंद्र सरकार को किसानों के आगे झुकना पड़ा।
राजीव गांधी के भारतीय किसान यूनियन की सभी 35 मांगों पर फैसला लेने के आश्वासन पर वोट क्लब का धरना 31 अक्टूबर 1988 को खत्म हुआ।
कहते हैं कि इस आंदोलन से चौधरी टिकैत को वह कद हासिल कर लिया कि प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री भी उनके आगे झुकने लगे थे।
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