Prabhat Times
नई दिल्ली। कृषि बिल (Agriculture Bill) कोे लेकर किसानों और केंद्र में गतिरोध बरकरार हैं। अगर केंद्र सरकार कृषि कानून वापस न लेने पर अड़िग है तो किसानों ने भी आज शाम बेनतीजा रही बैठक के बाद स्पष्ट कर दिया है कि कानूनों की वापसी के अलावा कुछ भी मानने को तैयार नहीं है। किसान और केंद्र की अगली बैठक 8 जनवरी को रखी गई है।
बैठक खत्म होने के बाद भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि किसानों ने सरकार का दिया संशोधन फाड़ दिया। आज की बातचीत में किसी भी मुद्दे पर सहमति नहीं बन सकी है।
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, पीयूष गोयल और सोम प्रकाश ने विभिन्न किसान संगठनों के 41 नेताओं के साथ बातचीत की। दोपहर में शुरू हुई बैठक के खत्म होने के बाद किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा, ”हमारी मांगों पर बातचीत हुई।
कानून वापसी नहीं, तो घर वापसी नहीं। कोई तनातनी नहीं है। हमने साफ कर दिया है कानून वापसी के बिना कुछ भी मंजूर नहीं है। 8 जनवरी को फिर से बात होगी। हमने सरकार का संशोधन फाड़ दिया।”
देश को ध्यान में रखकर ही होगा निर्णय: नरेंद्र तोमर
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि सरकार देशभर के किसानों के प्रति प्रतिबद्ध है. सरकार जो भी निर्णय करेगी, सारे देश को ध्यान में रखकर ही करेगी. चर्चा जिस हिसाब से चल रही है, किसानों की मान्यता है कि सरकार इसका रास्ता ढूंढे और आंदोलन समाप्त करने का मौका दे.
चर्चा का माहौल अच्छा था परन्तु किसान नेताओं के कृषि क़ानूनों की वापसी पर अड़े रहने के कारण कोई रास्ता नहीं बन पाया. 8 तारीख को अगली बैठक होगी. किसानों का भरोसा सरकार पर है इसलिए अगली बैठक तय हुई है.
कृषि कानूनों को वापस लेने के मुद्दे पर कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि हमें देशभर के बाकी राज्यों के किसानों से भी बात करनी होगी क्योंकि हमें बाकी देश के किसानों का हित भी देखना है.
बहुत से राज्यों के किसान और संगठन इन तीनों कानूनों का समर्थन कर रहे हैं. उनका मानना है कि इससे किसानों का फायदा होगा. उन सब से बातचीत करने के बाद ही मैं आपको बता पाऊंगा. इसलिए 8 जनवरी मीटिंग रखी गई है.
‘काफी दबाव में सरकार’
सातवें दौर की बातचीत के बाद किसान नेता ने दावा किया कि सरकार काफी दबाव में है। ऑल इंडिया किसान सभा के महासचिव हन्नान मोल्लाह ने बताया, ”सरकार दबाव में है।
हम सभी ने कहा कि हमारी कृषि कानूनों को रद्द किए जाने की मांग है। हम किसी अन्य विषय पर चर्चा नहीं करना चाहते हैं। जब तक कानून वापस नहीं लिए जाते, तब तक आंदोलन वापस नहीं होगा।”
बैठक में नहीं हुई एमएसपी समेत अन्य मुद्दों पर बात
दोनों पक्षों ने एक घंटे की बातचीत के बाद भोजनावकाश लिया। सरकार इन कानूनों को निरस्त नहीं करने के रुख पर कायम है और समझा जाता है कि उसने इस विषय को विचार के लिए समिति को सौंपने का सुझाव दिया है।
दोनों पक्षों के बीच एक घंटे की बातचीत में अनाज की खरीद से जुड़ी न्यूनतम समर्थन मूल्य की प्रणाली को कानून मान्यता देने के किसानों की महत्वपूर्ण मांग पर चर्चा नहीं हुई है।
किसान संगठन के प्रतिनिधि अपने लिए खुद भोजन लेकर आए थे जो लंगर के रूप में था। हालांकि, 30 दिसंबर की तरह आज केंद्रीय नेता लंगर के भोजन में शामिल नहीं हुए और भोजनावकाश के दौरान अलग से चर्चा करते रहे।
दिल्ली की सीमाओं पर जारी है प्रदर्शन
पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हजारों की संख्या में किसान कृषि संबंधी तीन कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर पिछले एक महीने से अधिक समय से दिल्ली की सीमा पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के आसपास प्रदर्शन स्थल पर भारी बारिश और जलजमाव एवं जबर्दस्त ठंड के बावजूद किसान डटे हुए हैं।
गौरतलब है कि ये कानून सितबर 2020 में लागू हुए और सरकार ने इसे महत्वपूर्ण कृषि सुधार के रूप में पेश किया और किसानों की आमदनी बढ़ाने वाला बताया।
बैठक के दौरान सरकार ने तीनों कृषि कानूनों के फायदे गिनाये जबकि किसान संगठन इन कानूनों को वापस लेने पर जोर देते रहे ताकि नए कानून के बारे में उन आशंकाओं को दूर किया जा सके कि इससे एमएसपी और मंडी प्रणाली कमजोर होगा और वे बड़े कारपोरेट घरानों की दया पर होंगे।
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