नई दिल्ली (ब्यूरो): लॉकडाऊन देश भर में चल रहा है। कई राज्यो में कर्फ्यू भी लगाया हुआ है। देश की जनता कोरोना के डर से घरों में बंद है। सरकार व प्रशासन उन्हें डेली यूज़ की जरूरी वस्तुएं पहुंचाने में जुटा हुआ है।
लेकिन इस लॉकडाऊन के बीच देश में संभवतः पहली बार कई सकारात्मक पहलू भी सामने आएं है। आईए जाने क्या है ये सकारात्मक पहलू
प्रदूषण का कम होना
दिल्ली-मुंबई जैसे मेट्रो शहरों समेत लगभग पूरे देश में इस वक्त लॉकडाउन है। इसके कारण फैक्ट्रियां, ऑफिस यहां तक कि रेल-बस सुविधाएं भी बंद हैं।
इन सबके बंद होने से अर्थव्यवस्था को तो खासा नुकसान हो रहा है लेकिन पर्यावरण की हालत थोड़ी सुधरती लग रही है।
अगर दिल्ली-एनसीआर की बात करें तो यहां फर्क साफ महसूस किया जा सकता है और आंकड़े भी कुछ ऐसी ही बात करते हैं।
26 मार्च, 2020 को नोएडा का एयर क्वालिटी इंडेक्स 77 का आंकड़ा दिखा रहा था। जबकि इसी तारीख को 2019 में यह आंकड़ा 156 यानी इसके दुगने से भी ज्यादा था।
फिलहाल हर बढ़ते दिन के साथ एक्यूआई कम हो रहा है। साफ है कि लॉकडाउन के चलते हवा की गुणवत्ता बढ़ गई है।
यह देखना थोड़ा खुशी देता है कि दिल्ली-एनसीआर जैसे इलाकों में भी आजकल चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई देने लगी है।
परिवार के साथ समय
हाल ही में फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप ने अपने इंटरव्यू में बताया कि कोई काम न होने के चलते एक दिन उन्होंने अपनी बेटी के साथ बैठकर करीब छह घंटे तक गप्पें मारीं।
उनके मुताबिक बीते 15 सालों में ऐसा पहली बार हुआ था। हालांकि कश्यप एक व्यस्त फिल्मकार हैं और उनकी बेटी भी भारत में नहीं रहती है, इसलिए उनके साथ ऐसा होना स्वाभाविक है।
लेकिन जीवन की भागदौड़ में कई बार बेहद आम लोग भी अपने परिवार को पर्याप्त समय नहीं दे पाते हैं। यह लॉकडाउन परिवार के साथ वक्त बिताने का भी मौका बन गया है।
इसके अलावा, इस वक्त को पुराने दोस्तों और छूट चुके रिश्तेदारों को याद करने और उनसे फोन या मैसेजिंग के जरिये संपर्क करने के लिए भी इस्तेमाल किया जा रहा है।
धर्म और नस्ल का भेद
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि दुनिया के ग्लोबल विलेज बनने के साथ ही राष्ट्रवाद की भावना ने जोर पकड़ा है। लगभग हर देश के लोग, किसी न किसी समुदाय से खतरा महसूस करते हैं या अपने आप को उनसे श्रेष्ठ समझते हैं।
बीते कुछ समय के भारत को देखें तो यहां सांप्रदायिक समीकरणों की वजह से लगातार सामाजिक समीकरणों को बिगड़ते देखा जाता रहा है।
अब जब दुनिया भर में कोरोना वायरस का प्रकोप फैल गया है तो इन सब बातों के बारे में सोचने की फुर्सत ज्यादातर लोगों को नहीं है।
अभी समाज, देश और दुनिया बंटे हुये तो हैं लेकिन यह बिलकुल अलग तरह और वजह से हुआ है।
श्रम की पहचान
सवा अरब की जनसंख्या वाले भारत में मानव संसाधन की कोई कमी नहीं है। शायद यही वजह है कि य़हां पर न तो इंसान की मेहनत की उचित कीमत लगाई जाती है और न ही उसे पर्याप्त महत्व दिया जाता है।
कथित छोटे काम करने वालों को अक्सर ही यहां हेय दृष्टि से देखा जाता है। फिर चाहे वह घर में काम करने वाली बाई हो या कचरा उठाने वाला कर्मचारी या घर तक सामान पहुंचाने वाला डिलीवरी ब्वाए।
लेकिन कोरोना वायरस के हमले के बाद ज्यादातर लोगों को इनका महत्व समझ में आने लगा है।पिछले दिनों इस बारे में जरूर सोचा होगा कि वह व्यक्ति होगा जो सुबह-शाम हमारे नल की सप्लाई शुरू करता करता है अगर वह ऐसा करना बंद कर दें तो क्या होगा?
या फिर कूड़े वाला अगले 21 दिन कूड़ा ना उठाये तो? कहीं लॉकडाउन खत्म होने से पहले वॉटर प्यूरीफायर खराब हो गया तो? या फिर डिलीवरी करने वाले ऐसा करना बंद कर दें तो?
कोरोना संकट के इस वक्त में बड़े फैसले और ‘महत्वपूर्ण’ काम करने वाले ज्यादातर लोग घरों में बंद हैं और बहुत मूलभूत काम पहले की तरह जमीन पर ही हो रहे हैं।
यह अहसास इस वक्त ज्यादातर लोगों को है लेकिन यह कितना स्थायी है यह कुछ समय बाद पता चल पाएगा।
आर्थिक समीकरण
यह तय है कि कोरोना वायरस के चलते दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं की स्थिति डांवाडोल होने वाली है। हो सकता है कि इसके असर को पूरी तरह खत्म होने में अगले कई सालों का वक्त लगे।
लेकिन इसकी वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमत आधी से भी कम हो गई है। तेल के दाम कम हैं इसलिए भारत सरकार इसकी बाज़ार कीमत बढ़ाए बगैर, इस पर ज्यादा एक्साइज ड्यूटी वसूल कर रही है।
जानकारों का मानना है कि तेल के दाम अब एक लंबे समय तक नहीं बढ़ने वाले। कोरोना की मुसीबत से छुटकारा पाने के बाद भी।
ऐसे में इससे न केवल सरकार को ज्यादा राजस्व मिल सकता है बल्कि देश का चालू खाते का घाटा भी थोड़ा कम हो सकता है और महंगाई भी नियंत्रण में रखी जा सकती है।
यह और बात है कि कोरोना के चलते अर्थव्यवस्था को जो नुकसान होगा उसके सामने ये चीजें उतनी मायने नहीं रखती हैं। लेकिन यह कोरोना संकट के भुस में फायदे की एक छोटी सुई तो है ही।