पंजाब की 16वीं विधानसभा के चुनाव में गठबंधन और सियासी समीकरण बदलने से प्रदेश के करीब 20 प्रतिशत जट्ट सिख संशय में हैं। पढ़िए, सूबे की सियासत में धर्म के फैक्टर पर विशेष खबर…
इस बार जट्ट सिख नेता चार फ्रंटों में बंटे हुए हैं। पहला, कैप्टन अमरिंदर, जो भाजपा के साथ हैं। दूसरा, 25 साल बाद बीजेपी से अलग हुए शिअद के सुखबीर बादल हैं। तीसरा फ्रंट आप के भगवंत मान और चौथा केंद्र कांग्रेस के नवजोत सिंह सिद्धू हैं।
वहीं, किसानों की पार्टी के चुनाव मैदान में उतरने से भी जट्ट सिख वोटर्स बंट सकते हैं। कारण, किसान आंदोलन से भी कई जट्ट सिख यूनियन जुड़ी रही हैं। कांग्रेस ने एससी सिख चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाकर 23 प्रतिशत एससी सिख वोटरों के साथ 20 प्रतिशत जट्ट सिखों में भी सेंध लगाने की कोशिश की है। बात अगर सूबे के धार्मिक मतदाताओं की करें तो सिखों की संख्या सबसे ज्यादा 55 प्रतिशत (1.25 करोड़) है। इसमें 20 प्रतिशत जट्ट सिखों के अलावा 23 प्रतिशत में मजहबी, रामदासिया, रविदासिया और वाल्मीकि सिख शामिल हैं। 12 प्रतिशत अरोड़ा, खत्री समेत अन्य भी हैं। इनका 78 सीटों पर सीधा प्रभाव है, इसमें 44 पर जट्ट सिख और 34 पर एससी सिख का असर है।
दूसरी तरफ, 82 लाख हिंदू मतदाता भी 37 सीटों पर एक तरफा दखल रखते हैं, जो किसी भी दल की हवा निकालने में सक्षम हैं। हालांकि, हिंदू मतदाता किसान आंदोलन में भी ज्यादा सक्रिय नहीं थे और इनके प्रभाव वाले क्षेत्र में पिछले चुनावों में भाजपा का दबदबा रहा है। इस बार मामला चतुष्कोणीय होने पर जट्ट सिख वोटर संशय में हैं कि वोट किसे दें ।
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