जालंधर। रत्न अस्पताल के डाक्टर बलराज गुप्ता पर सेहत विभाग और पुलिस की कार्रवाई के पीछे इस बार किसी बड़ी साजिश की बू आ रही है।
ऐसी संभावना इसलिए जताई जा रही है क्योंकि भ्रूण जांच और गर्भपात जैसे गंभीर आरोपों में डाक्टर बलराज गुप्ता के खिलाफ दर्ज करवाई गई एफ.आई.आर. में सेहत विभाग द्वारा कोई ठोस साक्ष्य पेश नहीं किए गए हैं।
जिस कारण सेहत विभाग के साथ साथ कमिश्नरेट जालंधर पुलिस की निष्पक्षता पर भी सवाल उठ रहे हैं। डाक्टर गुप्ता के खिलाफ पी.सी.पी.डी.टी. एक्ट के गंभीर आरोपों में दर्ज एफ.आई.और. और केस पर नज़र दौड़ाई जाए तो स्पष्ट लगता है कि डाक्टर गुप्ता इस बार किसी बड़ी साजिश का शिकार हो गए हैं।
सेहत विभाग के कथित स्टिंग से लेकर पुलिस कार्रवाई तक पूरे एपिसोड में कई सवाल खड़े हो रहे हैं, जिनका जवाब फिलहाल मामले से जुड़े किसी अधिकारी के पास नहीं है।
बता दें कि कुछ दिन पहले रत्न अस्पताल में हंगामा हुआ और डाक्टर बलराज गुप्ता पर भ्रूण जांच और गर्भपात जैसे गंभीर आरोपों के अधीन केस दर्ज कर दिया गया। डाक्टर गुप्ता पर आरोप है कि उन्होने इस अवैध कार्य के लिए 25 हज़ार रूपए लिए।
अनसुलझे सवाल
इस मामले में सेहत विभाग और पुलिस की कार्रवाई पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। डाक्टर गुप्ता पर आरोप है कि भ्रूण जांच के लिए 25 हज़ार रूपए लिए गए।
बड़ा सवाल ये है कि अगर डाक्टर बलराज गुप्ता ने सेहत विभाग की कथित स्टिंग टीम से 25 हज़ार रूपए लिए तो पुलिस ने मौके पर ही मौजूद डाक्टर गुप्ता से उक्त राशि की बरामदगी क्यों नहीं की?
अगर वाकई में ही ये स्टिंग टीम सेहत विभाग की थी तो जब अस्पताल में विवाद हुआ तो पुलिस ने स्टिंग करने वालों को हिरासत में लिया। सेहत विभाग के अधिकारी उस वक्त तुरंत मौके पर क्यों नहीं पहुंचे?
अगर वाकई में ये सब सेहत विभाग की प्लानिंग थी डाक्टर बलराज गुप्ता से भ्रूण जांच संबंधी बातचीत की कोई आडियो रिकार्डिंग, रूपए के लेन-देन की वीडियो रिकार्डिंग क्यों नहीं की गई?
एफ.आई.आर. में डाक्टर गुप्ता व स्टाफ पर धक्का मुक्की के आरोप हैं, लेकिन इस संबंधी भी न तो पुलिस ने अस्पताल के सी.सी.टी.वी. फुटेज चैक करवाई और न ही अस्पताल रिसेप्शन पर मौजूद 20-25 मरीज़ों के ब्यान कलमबद्ध किए।
पुलिस और सेहत विभाग की गले की फांस न बनेगा ये मामला!
डाक्टर बलराज गुप्ता के खिलाफ दर्ज किए गए इस गंभीर मामले में फिलहाल कोई साक्ष्य सेहत विभाग द्वारा पेश नहीं किए गए हैं।
लेकिन सारा हालात पर नज़र दौड़ाई जाए तो स्पष्ट है कि ये मामला सेहत विभाग और फिर पुलिस के गले की फांस बन सकता है। क्योंकि सेहत विभाग ने भी इस मामले में नियमों का पालन नहीं किया और न ही पुलिस ने इस केस में प्रोफेशन तरीके से इनवेस्टीगेशन की।
डाक्टर गुप्ता पर दर्ज इस मामले में पुलिस अधिकारी भी फिलहाल चुप हैं। पुलिस का कहना है कि उनकी टीम अस्पताल में विवाद की सूचना पर वहां पहुंची थी, कुछ लोगों को हिरासत में लेकर थाना पहुंचे। लेकिन उसके बाद इस मामले में सेहत विभाग की एंट्री हुई।
जब कथित स्टिंग चल रहा था तो सेहत विभाग का कोई अधिकारी मौजूद नहीं था। पुलिस के मुताबिक सेहत विभाग के हस्तक्षेप के कारण पुलिस जांच की दिशा बदली। एक अधिकारी का कहना है कि दर्ज एफ.आई.आर. में सबूत पेश करना अब सेहत विभाग का काम है।