नई दिल्ली। कोरोना वायरस से ठीक हो चुके मरीजों के प्लाज्मा थेरेपी से कोरोना रोगियों का इलाज किए जाने से भी मृत्यु दर में कमी नहीं आ रही है। इलाज के इस तरीके के प्रभाव का आकलन करने के लिए एम्स में किए गए अंतरिम परीक्षण विश्लेषण में यह बात सामने आई है।
इस इलाज के तहत कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों के ब्लड से एंडीबॉडीज लिया जाता है और कोरोना वायरस से पीड़ित मरीज को चढ़ाया जाता है, ताकि उसकी रोग प्रतिरोधक प्रणाली को वायरस से लड़ने के लिए तुरंत मदद मिल सके।
एम्स (AIIMS) के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने बताया कि कोरोना के एम्स के 30 मरीजों पर यह स्टडी की गई। लेकिन परीक्षण के दौरान प्लाज्मा थेरेपी का कोई ज्यादा फायदा नजर नहीं आया।
उन्होंने कहा कि परीक्षण के दौरान एक समूह को मानक सहयोग उपचार के साथ प्लाज्मा थेरेपी दी गई जबकि दूसरे समूह का मानक इलाज किया गया।दोनों समूहों में मृत्यु दर एक समान रही और रोगियों की हालत में ज्यादा क्लीनिकल सुधार नहीं हुआ।
प्लाज्मा की सुरक्षा की जांच होनी चाहिए
डॉ. गुलेरिया ने बताया, ‘‘बहरहाल, यह केवल अंतरिम विश्लेषण है और हमें ज्यादा विस्तृत आकलन करने की जरूरत है कि किसी उप समूह को प्लाज्मा थेरेपी से फायदा होता है।’ उन्होंने कहा कि प्लाज्मा की भी सुरक्षा की जांच होनी चाहिए।
इसमें पर्याप्त एंटीबॉडी होनी चाहिए जो कोविड-19 रोगियों के लिए उपयोगी हों. कोविड-19 पर बुधवार को तीसरे नेशनल क्लीनिकल ग्रैंड राउंड्स पर हुई परिचर्चा में प्लाज्मा थेरेपी का कोरोना वायरस से पीड़ित रोगियों पर होने वाले प्रभाव को लेकर चर्चा हुई।
वेबिनार में एम्स के मेडिसिन विभाग में अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. मोनीष सोनेजा ने कहा, ‘‘प्लाज्मा सुरक्षित है। जहां तक इसके प्रभाव की बात है तो हमें अब भी हरी झंडी नहीं मिली है। इसलिए क्लीनिकल उपयोग उचित है और राष्ट्रीय दिशानिर्देशों के दायरे में है।’’